देश के तीन उत्तर पूर्वी प्रदेशों के विधानसभा चुनाव परिणाम आ गए हैं। दो प्रदेश त्रिपुरा व नागालैंड में भाजपा की गठबंधन सरकार को स्पष्ट बहुमत मिला है। मेघालय में नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) 26 सीटों पर जीत कर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। एनपीपी व उसके नेता कोनराड संगमा को भाजपा ने चुनाव प्रचार के दौरान भ्रष्टतम नेता व पार्टी निरूपित किया था। एनपीपी के साथ पूर्व में भाजपा ने गठबंधन सरकार बनाई थी। परन्तु चुनाव के एनवक्त पहले भाजपा ने ‘‘छब्बे बनने के चक्कर’’ में गठबंधन तोड़ दिया था। लेकिन परिणाम आने पर ‘‘दुबे भी नहीं रह पाए’’। परिणाम आने के दौरान ही भाजपा ने एनपीपी के साथ पुनः सरकार बनाये जाने के जो प्रारंभिक संकेत दिए थे, वे अब फलीभूत होने जा रहे हैं। भ्रष्टतम राजनीति की बिसात तो देखिये! भ्रष्टतम व्यक्ति निरूपित किये गये मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने किस बेशर्मी से देश के उस गृहमंत्री से सरकार बनाने के लिये समर्थन व आशीर्वाद मांग लिया जिसने ही चुनाव प्रचार के दौरान उसे भ्रष्टतम करार किया था। चूंकि ‘‘घायल की गति घायल जाने’’ अतः बेशर्मी का जवाब आज की राजनीतिक बेशर्मी ही हो सकती है। अतः कोनराड संगमा के प्रस्ताव को अमित शाह ने बेशर्मी से स्वीकार कर लिया। गोया कि ‘‘सर सलामत तो पगड़ी हजार’’! क्या आप भूल गये (बेशर्मी) दो माइनस ;.द्ध ;.द्धत्ऱ (सत्ता) होती है। चुनाव परिणामों की चर्चा करने के पूर्व कुछ बातें ‘‘कट्टरता’’ के संबंध में भी कर ले, जिसका संदर्भ आगे चुनाव परिणाम के विश्लेषण में किया गया हैै।
सोमवार, 6 मार्च 2023
केजरीवाल की झूठी ‘‘कट्टर ईमानदारी’’ को ‘‘कट्टर बेईमानी’’ सिद्ध करने वाली भाजपा क्या मेघालय में ‘‘सत्ता’’ के लिए ‘‘कट्टर अनैतिकता’’ को अपनाएगी?
अन्ना आंदोलन के ‘‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’’ की मुहिम से झूठी कसम खाकर नौकरशाह, गैर राजनीतिक केजरीवाल ने बनाई ‘‘नई आप पार्टी’’ को बार-बार ‘‘कट्टर- ईमानदारी’’ की बात को दोहराना पड़ रहा है। क्यों? क्योंकि बारंबार एक के बाद एक नेता भ्रष्टाचार के आरोप में या तो जेल में बंद है या जमानत पर हैं, परन्तु अभी तक दोषमुक्त कोई भी नहीं हुआ है। भाजपा की दिल्ली में दुश्मन नंबर एक आप पार्टी जिसने केंद्रीय सरकार के आंखों के सामने के नीचे पैरों तले जमीन खिसका कर भाजपा की जमीन पर झाड़ू लगाकर साफ कर दिया है। ऐसे आप पर भाजपा ने ‘आप’ की कट्टर इमानदारी के जवाब में कट्टर बेईमान होने का प्रमाण पत्र बार-बार जारी किया है और इन प्रमाणपत्रों के जारी करने के लिए भाजपा के पास ‘‘जबरा मारे और रोने न दे’’ के प्रतिरूप केंद्रीय जांच ब्यूरो सहित अनेक आर्थिक जांच करने वाली एजेंसियां के जांच परिणाम सामने है।
इन आरोप-प्रत्यारोपों से साफ है कि इस देश में कोई व्यक्ति या पार्टी ‘‘सामान्य रूप’’ से ईमानदार या बेईमान नहीं हो सकती है। क्योंकि देश सहिष्णुता से कट्टरवाद की ओर ही तो बढ़ रहा है? कट्टरपंथी, कट्टर सांप्रदायिकता, कट्टर धर्मांता, कट्टर आतंकवादी, और न जाने कितने कट्टर (कट्टा लिए हुए?) इस देश में मौजूद हैं? सिर्फ कट्टर मानवीयता लिए हुए मानव को छोड़कर जो कहीं नजर नहीं आती है। ‘‘राष्ट्रवाद’’ को भी ‘‘कट्टर राष्ट्रवाद’’ में बदल दिया गया है। कट्टरता का मतलब सामान्य से अधिक ‘बल’ ‘प्रयोग’ (उपयोग) करना होता है। आप जानते ही हैं कि ‘‘बल प्रयोग’’ सामान्य परिस्थितियों में नहीं किया जाता है। अतः ‘कट्टरता’’ सामान्य स्थिति की ‘‘बिम्ब’’ न होने के कारण श्रेष्ठतर कैसे हो सकती है? बावजूद इसके कट्टरता के चलन के इस युग में भाजपा कैसे पीछे रह जाती? नैतिकता ‘‘जाये चूल्हे में’’! इसलिए उन्होंने ‘‘कट्टर अनैतिकता’’ को मेघालय में अपनाने का निर्णय लिया है। कैसे! इसकी विवेचना आगे करते हैं।
याद कीजिए! मेघालय के चुनाव प्रचार के दौरान देश के गृह मंत्री अमित शाह ने क्या-क्या नहीं कहा था? अमित शाह का यह कथन महत्वपूर्ण है कि एनपीपी के नेता और उनकी पार्टी देश की सबसे भ्रष्टतम पार्टी है और मेघालय ऐसा प्रदेश है, जहां केंद्र का पैसा रोक कर सबसे कम उपयोग प्रदेश की कोनराड संगमा सरकार कर पाती है। ऐसी निष्क्रिय सरकार को उखाड़ फेंकने की आवश्यकता है। दोनों ‘‘संगमा’’ पर परिवारवादी राजनीति करने का आरोप लगाते हुए मेघालय की जनता से राज्य को दोनों परिवारों से मुक्ति का आव्हान उन अमित शाह जो भ्रष्टाचार के विरूद्ध ‘‘जीरो टॉलरेंस’’ की नीति अपनाने वाली भाजपा के गृहमंत्री हैं, ने किया था। जिस व्यक्ति को भ्रष्टाचार का ‘सरदार’ बताकर उन से मुक्ति की अपील जनता से की थी, अब उसी ‘‘चोर उचक्का चैधरी’’ के साथ गठबंधन कर ‘‘कुटनी भई परधान’’ सरकार बनाना क्या कट्टर अनैतिकता नहीं है? भाजपा के अध्यक्ष जे पी नड्डा ने चुनाव प्रचार के दौरान यह घोषणा की थी कि सत्ता में आने पर भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में आयोग बनाया जायेगा। .
अपने बेरों को खट्टा कोई नहीं बताता’’ भाजपा प्रवक्ता का यह कथन तो बहुत ही हास्यास्पद है कि ईमानदार भाजपा के साथ सरकार बनाने के लिए कम भ्रष्ट कोनराड संगमा (एनपीपी) के साथ आने से वे ईमानदार हो जाएंगे? यदि बीजेपी बेईमानी को ईमानदारी में परिवर्तित करने वाली पारस पत्थर है, तब फिर देश की कांग्रेस सहित भ्रष्ट पार्टियों तथा जनता को भी अपने साथ रखकर ईमानदार बनाकर, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 तथा भारतीय दंड संहिता की भ्रष्टाचार संबंधी धारा 161 से 165 को समाप्त क्यों नहीं कर देती है? ज्यादा दुखद बात यह है की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने ‘‘परोपकाराय सतां विभूतयः’’ के मंत्र को भुला कर शपथ ग्रहण समारोह में पहुंच रहे हैं। क्या भ्रष्टाचार विरोधी ‘‘परसेप्शन’’ और ‘‘नरेटिव’’ के आवरण को बनाए रखने के लिए प्रधानमंत्री की उपस्थिति टाली नहीं जा सकती है?
मेघालय में भाजपा यदि सरकार बनाने का प्रयास से दूर रहती तो क्या उसकी सेहत पर कुछ असर पड़ जाता? 56 इंच का सीना 55 इंच तो नहीं हो जायेगा? ‘‘सत्ता भ्रष्ट करती है व पूर्ण सत्ता पूरी तरह से’’, कहावत को सत्य सिद्ध करने के लिए ही भाजपा ने शायद भ्रष्टतम व्यक्ति के साथ सरकार बनाने का निर्णय लिया है। विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी 2 से 300 पार करने वाली पार्टी से कुछ अलग दृढ़ निर्णय की आस जनता को है, ताकि देश की राजनीति में हो रही गिरावट व अनैतिकता को कुछ हद तक रोका जा सके। पार्टी का यह नारा भी रहा है ’’पार्टी विथ डिफरेंस’’। परन्तु यह डिफरेन्स रह कहां गया है? यहां तो ‘‘घर घर मटियाले चूल्हे’’ जैसा हाल हो गया है पार्टी का। कांग्रेस को अपनी मूल अच्छी सकारात्मक पहचान खत्म करने में 70 वर्ष लग गए तो भाजपा 22 वर्षो में ही अपनी बनाई अलग पहचान, साख, विश्वसनीयता को क्या खोना चाहती है? ’’संघ’’ को उसके मूल में जा कर ‘‘करू कं शक्तों रक्षितुं मृत्युकाले’’ को नहीं भूलना चाहिये, अन्यथा 300 से वापिस पुरानी स्थिति में आने में उतनी देरी भी नहीं लगेगी, जितनी कांग्रेस को 425 से 52 पर आने में लगी।
अंत में एक सबसे महत्वपूर्ण बात अवश्य रेखांकित करना चाहता हूं। यदि भाजपा को ईमानदारी से केजरीवाल की ‘‘कट्टर ईमानदारी के झूठे आवरण से लपेटी हुई कट्टर बेईमानी’’ को जनता के बीच विश्वसनीयता के साथ प्रचारित, प्रकाशित करना है, तो कम से कम इस मुद्दे पर भाजपा को स्वयं शुचिता अपनानी दिखानी ही होगी। अटल जी ने शुचिता अपनाते हुए एक वोट से अपनी सरकार को जाने देने में बिल्कुल संकोच नहीं किया था। नरेन्द्र मोदी को आज वही अटल जी की शुचिता अपनाने की गंभीर आवश्यकता है। ठीक वैसे ही यदि अटल जी आज होते तो शायद उन्हें भी कुछ मामलों में नरेन्द्र मोदी जैसी दृढ़ता अपनाने की आवश्यकता होती। सरकार बनाने के इस मुद्दे पर भाजपा को इस बात को ध्यान में रखना होगा की जनता ने उसे न तो सरकार बनाने का जनादेश दिया है न ही मुख्य विपक्षी दल के रूप में और न ही सबसे बड़ी पार्टी के रूप में। तब वह सत्ता बनाने के खेल में बेवजह क्यों छटपटा रही है, यह बिल्कुल समझ से बिल्कुल परे है, खासकर उस स्थिति में जब भाजपा की रीति, नीति, सिद्धांत दिलो-दिमाग में बिजली के बल्ब समान चमक रहे हों। अन्यथा जो हो रहा है, भाजपा कर रही है, वह आज की राजनीति का एक ‘‘प्राकृतिक चरित्र’’ बन गया है। यह बात बिल्कुल समझ से परे है कि जब भाजपा का मुख्यमंत्री मेघालय में नहीं बन रहा है तब एक उस भ्रष्ट मुख्यमंत्री को बनाए रखने के लिए भाजपा समर्थन क्यों दे रही हैं। जिस ‘‘परिवार’’ को उखाड़ने की अपील चुनाव प्रचार के दौरान अमित शाह ने की थी। बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए छोटे सिद्धांत को छोड़ा जा सकता है। परंतु किंचित उपलब्धि के लिए बड़े सिद्धांत को साइडलाइन कर देना कौन सा ज्ञान-विज्ञान, प्रकांड है, कोई भाजपाई यह समझायेगा?
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शानदार 🙏
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