एक आईआरएस (भारतीय राजस्व सेवा) व पूर्व आयकर कमिश्नर रहे अरविंद केजरीवाल का उक्त प्रश्न ही पढ़ा लिखे होने की नहीं, बल्कि गैर समझदारी होने की निशानी है, जो लगभग अनपढ़ मूर्खों जैसी स्थिति ही है। पढ़ा लिखा होने व समझदार तथा बुद्धिमान होने का मतलब क्या होता है? इस अंतर को समझना होगा। हर पढ़ा लिखा व्यक्ति पोस्ट डिग्री होल्डर, समझदार, बुद्धिमान हो यह जरूरी नहीं है। ठीक इसी प्रकार हर अनपढ़ व्यक्ति गधा, बुद्धिहीन, गैर समझदार हो यह भी आवश्यक नहीं है। निश्चित रूप से आज के युग में 21वीं सदी में शिक्षा का महत्वपूर्ण महत्व है। परंतु इसका कदापि यह मतलब नहीं निकाला जा सकता है कि लोकतांत्रिक संसदीय शासन में अनपढ़ व्यक्ति देश की बागडोर संभाल नहीं सकता है? जिस व्यक्ति को मताधिकार का अधिकार है, सिर्फ उसकी उम्र 18 से 25 वर्ष होने पर वह देश का प्रधानमंत्री बन सकता है। फिर वह चाहे चाय वाला हो या तथाकथित अनपढ़। इस सामान्य से ज्ञान को क्या अपने आप को पढ़ा-लिखा और ज्ञानी मानने वाले केजरीवाल नहीं जानते हैं?
पढ़ा लिखा होने का मतलब सिर्फ स्कूल जाना या कॉलेज जाकर डिग्री प्राप्त करना ही नहीं होता है। हमारी ऐतिहासिक संस्कृति में तो शिक्षा गर्भ में ही प्रारंभ हो जाती है। अभिमन्यु का उदाहरण क्या केजरीवाल भूल गए हैं? आज भी बच्चों का सबसे बड़ा शिक्षक उसके माता-पिता होते हैं। उसके बाद गुरु शिक्षक का नंबर आता है। वैसे प्रधानमंत्री की शिक्षा व डिग्री पर प्रश्न उठाने वाले और दिल्ली की शिक्षा का भारत में नहीं विश्व में बार-बार डंका बजाने वाले केजरीवाल क्या यह भी बताने का कष्ट करेंगे कि लगभग 10 साल से आपका शासन व्यतीत हो जाने के बावजूद आज भी दिल्ली जो देश की राजधानी है, में साक्षरता का प्रतिशत (88%) केरल (96%) की तुलना में कम क्यों है? केजरीवाल समान केरल के मुख्यमंत्री अपनी साक्षरता का ढिंढोरा नहीं पीटते है।
वस्तुतः ‘‘वक्र चंद्रमहि ग्रसइ न राहू’’ के सूत्र वाक्य को पकड़ कर चलने वाले केजरीवाल की आदत देश में नए-नए नैरेटिव तय (फिक्स) करने की हो गई है। इसी तारतम्य में उन्होंने यह नया पासा फेंका कि देश के प्रधानमंत्री के पद पर पढ़ा लिखा व्यक्ति ही होना चाहिए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पढ़े-लिखे नहीं हैं। केजरीवाल इसके पहले यह तय कर ले कि प्रधानमंत्री अनपढ़, कम पढ़े लिखे मंदबुद्धि या उनकी डिग्री और पोस्ट डिग्री, झूठी फर्जी है? केजरीवाल द्वारा सूचना के अधिकार के अंतर्गत प्रधानमंत्री की डिग्री की जानकारी प्राप्त करने के लिए दिए आवेदन पर गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा उन पर लगे रूपये 25000 के जुर्माने के पश्चात केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुछ कथनों का उल्लेख किया तथा कुछ नीतियों असफल होने की बात कही और उन सब बातों को प्रधानमंत्री की अनपढ़ता से जोड़ दिया। यानी ‘‘यार का गुस्सा भतार के ऊपर’’। बयानवीर केजरीवाल के बयानों व आरोपों की लंबी सूची देखें तो वे स्वयं उन्ही आधारों पर ज्यादा मूर्ख होते दिखते हैं, जिन आधारों पर वे प्रधानमंत्री को दिखाने का असफल प्रयास कर रहे हैं। केजरीवाल यह भूल जाते हैं कि अनुच्छेद 53 के अनुसार भारत संघ की कार्यपालिका की शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है। मतलब संसदीय लोकतंत्र में प्रधानमंत्री अपने मंत्रिमंडल सहयोगियों की सहायता से निर्णय लेकर राष्ट्रपति को लागू करने के लिए भेजते हैं और पूरा शासन देश में राष्ट्रपति के नाम से होता है। तब ऐसी स्थिति में एक व्यक्ति की तथाकथित अनपढ़ता लोकतंत्र में कहां बाधा पैदा कर रही है? वास्तविक धरातल में भी देश में शासन एक व्यक्ति नहीं चलाता है। संपूर्ण विधायिका से लेकर प्रशासनिक तंत्र की सक्रिय भागीदारी से ही शासन-प्रशासन चलता है। अन्यथा एक व्यक्ति के शासन से तो वह मोनार्की हो जाएगा? केजरीवाल के उपरोक्त तर्क नहीं, बल्कि कुतर्क इस बात को सिद्ध नहीं करते हैं की पढ़ा लिखा होना ही आवश्यक नहीं है, बल्कि बुद्धिमान व समझदार होना भी आवश्यक है। जो सिर्फ डिग्री मिलने से नहीं होता है, जैसा कि मैंने ऊपर उल्लेखित किया है। वैसे अनुभव भी एक शिक्षा है।
इस देश में कितने ऐसे राजनेता रहे हैं जो अनपढ़ या कम पढ़े लिखे थे, लेकिन उन्होंने सफलतापूर्वक शासन किया है, और अपना कर्तव्य निभाया है। पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह का उदाहरण सबके सामने है, जो स्कूली शिक्षा भी पूरी नहीं कर पाए थे। परंतु पिताजी के कहने पर गुरुमुखी पढ़कर ग्रंथी बन गए थे। इसलिए ज्ञानी कहलाए जो बाद में देश के राष्ट्रपति भी बने। विपरीत इसके ऐसे भी कितने उदाहरण है, जहां बहुत पढ़े-लिखे आईएएस आईआरएस होने के बावजूद बुद्धि का अजीरण होकर बुद्धिमान न होने के कारण देश को नुकसान ही पहुंचाया है। मतलब अपने कर्तव्य का पालन करने में पूरी तरह से असफल रहे हैं। ‘‘आंखों के आगे नाक तो सूझे क्या ख़ाक’’ की श्रृंखला में गिनती में केजरीवाल भी आते हैं। राजनीति में भाग न लेने के लिए बच्चे की कसम खाकर से लेकर दागी सांसदों को संसद से इस्तीफा देकर मुकदमा लड़कर दोषमुक्त होकर पुनः चुनाव लड़कर संसद में आने की पुरजोर मांग करने वाले अन्ना की राजनीतिक पार्टी न बनाने की सलाह को दरकरार कर नई राजनीतिक पार्टी आप का गठन कर राजनीति में आने वाले केजरीवाल ने वही सब न अपनाने वाला कार्य नीति को पूर्ण रूप से अपनाकर अपने में आत्मसात इसलिये कर लिया है कि ‘‘सियासत के लिये रियासत’’ जरूरी है। इसको क्या पढ़ा लिखा होना कहेंगे? या बुद्धिमानी कहेंगे? या समझदारी कहेंगे? या फिर सिर्फ बेवकूफी ही कहलाएगी? बेवकूफी कौन करेगा? अनपढ़ आदमी ही तो करेगा? मतलब पढ़ा लिखा होकर अनपढ़ +मूर्ख!
प्रधानमंत्री की डिग्री जानने का अधिकार प्रत्येक नागरिक को अवश्य है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा की गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा केजरीवाल रुपये 25000 के जुर्माने के संबंध में की गई पत्रकार वार्ता के जवाब में सांसद संजय सिंह क्या कह गए? ‘‘क्या देश का प्रधानमंत्री फर्जी व झूठी डिग्री लेकर देश पर राज कर सकता है’’? सच कहा है, ‘‘जैसी रूह से फरिश्त’’। इतने बड़े आरोप (गंभीर कितने?) के संबंध में क्या केजरीवाल, संजय सिंह ने प्रथम दृष्टया कोई साक्ष्य प्रस्तुत किया है? ‘‘खाता न बही जो केसरी कहे वही सही’’ (कांग्रेस में जब सीताराम केसरी कोषाध्यक्ष हुआ करते थे, तब यह जुमला बहुत चलता था) उसी तर्ज पर केजरीवाल के मुखारविंद से निकले शब्द बिना किसी साक्ष्य के अक्षरसः सही है, ऐसा मान लिया जाए? ‘‘मतलब केजरीवाल कहे जो सही बाकी सब बेमतलब’’?
केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के अनपढ़ होने का प्रश्न खड़ा कर अनजाने में ही देश की लगभग 140 करोड़ जनसंख्या में से लगभग 100 करोड़ मतदाताओं की संख्या को सीमित कर लगभग 23ः अनपढ़ लोगों का मतदान का अधिकार ही छीन लिया है? एक अनुमान के अनुसार भारत में साक्षरता का प्रतिशत लगभग 73ः है। आखिर देश के अनपढ़ प्रधानमंत्री को चुन कौन रहा है? जब अनपढ़ देश का प्रधानमंत्री नहीं हो सकता है, तो अप्रत्यक्ष रूप से लोकसभा सदस्यों के द्वारा प्रधानमंत्री को चुनने वाला अनपढ़ वोटर को मतदान का अधिकार कैसे हो सकता है? मतलब यह कि ’’शाह ख़ानमं की आंखें चुंधियाती हैं, शहर के चिराग गुल कर दो’’। एक पढ़े-लिखे बददिमाग अक्ल के अजीरण लिए केजरीवाल की खोपड़ी में इतनी सी बात समझ में नहीं आई तो फिर उसे पढ़ा लिखा अनपढ़ गवार कहना ज्यादा उचित होगा जो अनपढ़ से भी गए बीते हो गए हैं।
भाजपा पर आरोप लगाते समय केजरीवाल, सांसद संजय सिंह यह कहते थकते नहीं है कि भाजपा में जो जितना बड़ा भ्रष्टाचारी है, वह उतना ही बड़ा पदाधिकारी। इसी तर्ज पर आप पर यह आरोप बहुत आसानी से लगाया जा सकता है जो जितना ज्यादा पढ़ा-लिखा, वह उतना ही बड़ा झूठा। केजरीवाल के पढ़े लिखे हो कर अनपढ़ से भी गए बीते होने की एक बानगी जरूर देख लीजिए। साफ स्वच्छ छवि लिए हुए देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर पहली बार किसी नेता केजरीवाल ने व्यक्तिगत रूप से भ्रष्टाचार के आरोप यह कहकर लगाए हैं की अदानी मामले में भ्रष्टाचार मोदी ने किया है, अदाणी तो मात्र मैनेजर है। यह साहस नहीं दुस्साहस है, और दुस्साहस पढ़ा लिखा नहीं अनपढ़ व्यक्ति ही कर सकता है।
मनीष सिसोदिया पर शराब घोटाले के आरोप लगने पर स्कूल नीति का हवाला दे कर जवाब देना कौन से पढ़े-लिखे होने का सबूत है? केजरीवाल द्वारा भ्रष्टाचार में लिप्त अपने मंत्रिमंडल सहयोगियों को जिन्हें अभी तक न्यायालय से जमानत भी नहीं मिली है, सत्यवादी हरिश्चंद्र बतलाना तथा शहीद-ए-आजम भगत सिंह से तुलना करना आईआरएस (भारतीय राजस्व सेवा) की पढ़ाई में किस विषय में बतलाया गया है? यदि पढ़ने लिखने से केजरीवाल जैसे झूठे और गैर समझदार व गैर जिम्मेदाराना व्यक्तित्व का निर्माण होता है, तो ऐसी पढ़ाई को तौबा। अच्छा है, प्रधानमंत्री मोदी ऐसी पढ़ाई नहीं पढ़ें हैं।
अंत में केजरीवाल क्या यह बतलाने का कष्ट करेंगे कि आप के दो-दो मंत्री जेल में होने के बावजूद आप उनको दागी नहीं मानते हैं। तब मध्य-प्रदेश में विश्व का सबसे बड़ा शिक्षा कांड व्यापमं जैसे घटने, नकल तथा डिग्री खरीदने की लगातार बारंबार घटनाओं को देखते हुए क्या ऐसे लोगों को पढ़ा लिखा कहेंगे? इससे तो हमारे तथाकथित अनपढ़ मोदी ही अच्छे है।
सोमवार, 3 अप्रैल 2023
21वीं सदी के प्रधानमंत्री का पढ़ा लिखा होना आवश्यक है? अरविंद केजरीवाल! पढ़ा लिखा अनपढ़ ‘मूरख’ केजरीवाल?
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बहुत सुंदर ज़बाब केजरीवाल जैसे नालायक मुख्यमंत्री केलिए । जिसके मंत्री के यहां 2/3 करोड़ रूपए नकद मिले फिर भी दोषी नहीं ठहराया जाता। सिसोदिया मामले में भी उसे निरदोष मानता है। जनता को नासमझ समझते हैं। सिसोदिया की।रखेल को जेल हो गई उसका मेसेज भी देखें
जवाब देंहटाएंकेजरीवाल इस देश की इकोनॉमी को ध्वस्त करने की चाल चल रहे है। ऊर्जा जो किसी भी देश की तरक्की का आधार हैं उसे फ्री इलैक्ट्रिसिटी की पालिसी लाकर बर्बाद करने की चाल चल रहें है। पंजाब के बाद अब असम को टारगेट किया जा रहा है यानी की बॉर्डर स्टेट ।
जवाब देंहटाएंOk
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