एक माफिया गैंग को समाप्त करने के लिए दूसरे नये माफिया गैंग का निर्माण?
उमेश पाल हत्याकांड के दो आरोपियों का किया गया एनकाउंटर और तत्पश्चात दो दिन बाद ही दो प्रमुख आरोपीगण अतीक व उसका भाई अशरफ की पुलिस हिरासत में हुई हत्या क्या प्लांटेट है या अचानक अप्रत्याशित घटित घटना क्रम है? लोहा लोहे को ही काटता है की तर्ज पर माफिया गैंग को नई माफिया गैंग द्वारा तो मौत के घाट नहीं तो उतार नहीं दिया गया है? क्योंकि "शेर की मांद कभी खाली नहीं रहती"। यह भी एक संयोग ही है कि अतीक को पेशी में लाये जाने के समय ही पहला एनकाउंटर हुआ था? और अब अतीक के पुलिस रिमांड लिये जाने के बाद रात्रि लगभग 10.30 बजे जब उसे काल्विन अस्पताल ले जाया जा रहा था, तब उक्त हत्याओं को अंजाम दिया गया।
दुर्दांत अपराधी माफिया किंग अतीक अहमद व भाई अशरफ की पुलिस कस्टडी में हत्या अचंभित करने वाली है। तीनों हत्यारों ने पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई किये जाने के पूर्व ही तुरंत आत्मसमर्पण कर दिया। ये तीनों आरोपी कौन थे? अलग-अलग जगह से संबंध रखते हैं। परस्पर कोई परिचय नहीं था। बावजूद इसके वह सब कब परस्पर मिले, एकत्रित हुए और हत्या की योजना बनाई? महंगी, विदेशी, प्रतिबंधित, पिस्टल कहाँ से आयी? इन्हें खरीदने के लिए 7-8 लाख रुपये कहां से मिले? जबकि इन तीनों हत्यारों के परिवारों की आर्थिक स्थिति बेहद सामान्य बताई जा रही है। 48 घंटे से रेकी कर रहे थे? इसकी भनक तक पुलिस को नहीं लगी। न्यायालय का ऐसा कोई आदेश नहीं था कि अभियुक्तों को रूटीन जांच के लिए अस्पताल ले जाया जाए। अस्पताल ले जाते समय उतनी कड़ी सुरक्षा नहीं थी, जैसे पूर्व में थी। सुरक्षा में तथाकथित कमी की गई? अस्पताल स्टाफ अथवा डॉक्टर को भी अतीक के आने की कोई सूचना नहीं थी। तब फिर इन हत्यारों को यह सूचना कैसे मिली? गाड़ी अस्पताल के गेट के अंदर न ले जाकर पहले ही रोककर पैदल क्यों ले जाया जा रहा था, जबकि रास्ता साफ था? पुलिस सुरक्षा के बावजूद तीनों हत्यारों अभियुक्त के इतने निकट कैसे पहुंच गए कि उनकी कनपटी पर पिस्तौल अड़ा दी गई? बावजूद इसके 10 राउंड फायरिंग की गई? पुलिस द्वारा प्रत्युत्तर में कोई फायरिंग नहीं की गई? न ही सुरक्षा या अटैक (आक्रमण) की दृष्टि से हथियार निकालने का कोई प्रयास किया गया? सामान्य रूप से प्रेस कार्ड दिखाकर प्रेस वाले अभियुक्त से बात करने के लिए भीड़ में घुसते हैं? जिस कारण झूठा कार्ड हत्यारे बनाकर पत्रकार के रूप अतीक के पास पहुंचे। पत्रकारों को क्यों अभियुक्तों के बिल्कुल पास तक जाने दिया गया व बातचीत करने दिया गया? इस तरह के अनेकोनेक प्रश्न सोशल मीडिया में चल रहे है, फिलहाल जिन पर मैं कदापि जाना नहीं चाहता हूं, लेकिन "एक तिनका भी हवा का रुख़ बता देता है"।
प्राथमिक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि हत्यारों के आत्मसमर्पण के बाद पुलिस द्वारा उनके अपराध स्वीकृति के बयान के बाद क्या 10 घंटे में जांच पूरी हो गई? इस कारण पुलिस ने अगले दिन न्यायालय में पुलिस रिमांड तक नहीं मांगा? और तीनों हत्यारों की न्यायिक रिमांड दी गई। और अब कौन से "अंतड़ियों के बल खोलना बाक़ी रह गया" जो कि आज पुलिस ने 7 दिन की पुलिस रिमांड मांगी जो 4 दिन की मिली। परन्तु इस प्रश्न का कोई जवाब पुलिस ने अभी तक नहीं दिया कि तुरन्त पहले अवसर पर ही पुलिस रिमांड क्यों नहीं मांगी गई? दोनों अभियुक्तों की हत्या करने के बाद फिर तीनों हत्यारों की हत्या का इतनी शीघ्रतिशीघ्र इनपुट कैसे मिल गया? जिस कारण ही उन्हे 24 घंटे के भीतर ही प्रयागराज के नैनी जेल से प्रतापगढ़ जेल में शिफ्ट कर दिया गया। जबकि आश्चर्यजनक रूप से अतीक की हत्या का कोई इनपुट पुलिस को नहीं मिला? उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा इसके पूर्व सामान्यतया एनकाउंटर में अपराधियों के मारे जाने के बाद की गई कार्रवाई को लेकर पत्रकार वार्ता कर पत्रकार के प्रश्नों के उत्तर दिये जाते रहे हैं। परन्तु आश्चर्यजनक रूप से इस मामले में अभी तक ऐसा नहीं किया गया! क्यों?
घटना के पूर्व और घटना के तत्काल बाद आई यू. पी. शासन-प्रशासन और भाजपा के नेताओं की प्रतिक्रियाओं की बौछारांे से मामला आपके सामने आईने समान साफ हो जाता है कि ‘‘ख़ून सर चढ़ कर बोलता है’’। भाजपा ने ट्वीट किया, हमने पूर्व में ही मिट्टी में मिला देंगे का कथन कर दिया था। माफिया राज को मिट्टी में अवश्य मिलाइए। परन्तु अपराधी को मिट्टी में मिलाने का कार्य तो ईश्वर का है। ‘‘कोई काला कौआ तो खा कर आया नहीं’’।
मंत्री स्वतंत्र देव सिंह का बयान कि यह ‘‘कुदरत का आसमानी फैसला’’ है। केशव प्रसाद मौर्य उपमुख्यमंत्री का यह बयान कि हत्यारों का ऐसा ही हश्र होना था। "दिल में गांठ हो तो बानी में आंट आ ही जाती है"। क्या केशव प्रसाद मौर्य तय करेंगे कि आरोपी हत्यारे थे? या हत्या के मात्र आरोपी थे? और यदि उनको ही यह तय करना है तो न्यायालय, भारतीय दंड संहिता व दंड प्रक्रिया संहिता की आवश्यकता क्या है? न्याय में देरी अन्याय है, का प्रत्युत्तर ‘‘माफिया की समात्ति माफिया द्वारा’’ क्या ऐसा त्वरित तथाकथित न्याय का नया तरीका तो उत्तर प्रदेश सरकार ने ईजाद तो नहीं कर किया है? उत्तर प्रदेश शासन क्या यह भूल गया है कि एक ‘अपराधी’ चाहे वह कितना ही दुर्दांत माफिया क्यों न हो, उसकी सुरक्षा का कानूनी व संवैधानिक दायित्व सरकार का ही है।
"सोने को मुलम्मे की ज़रूरत नहीं होती" लेकिन इन सब एनकाउंटर व उक्त दोनों हत्या की घटना घटित होने के बाद मुख्यमंत्री योगी का प्रथम प्रतिक्रिया यही थी कि प्रदेश में कानून का राज है। अब माफिया किसी को डरा, धमका नहीं सकता है। यानी कि "हींग जाय पर बास न जाय"। उच्च सुरक्षा के घेरे के बावजूद हत्यारों की हत्या हो जाना, ‘‘क्या कानून का राज कहलायेगा’’? हत्या का कोई इनपुट न मिलना, क्या सुरक्षा एजेंसी की कोई विफलता नहीं है? तीनों हत्यारों के हत्या करने के बाद यह कथन कि हमे भी माफिया बनना है, क्या कानून के राज में माफिया बनने की सार्वजनिक घोषणा होती हैं? हत्या की घटना के तुरंत बाद ही "हंडिया चढ़ा, नोन की दरकार" वाली पुलिस विभाग की ही दो जाचंे बैठा दी गई। एक एसआईटी। दूसरी एसआईटी की पर्यवेक्षण (मॉनिटरिंग) के लिए तीन सदस्यीय दल एडीजी प्रयागराज की अध्यक्षता मेें बनाई गई। पुलिस विभाग जिस पर ही उंगली उठ रही है के द्वारा की जाने वाली जांच कितनी निष्पक्ष व प्रभावी होगी? आज ही इन्ही पुलिस बल में से 5 पुलिस कर्मियों को निलंबित भी कर दिया गया। इसके अतिरिक्त बिना मांगे आश्चर्यजनक रूप से त्वरित रूप से न्यायिक जांच की घोषणा कर दी गई, जो सामान्यतः जनता की मांग या भुक्तभोगी परिवार की मांग पर ही कुछ समय पश्चात की जाती है।
न्याय का यह महत्वपूर्ण सिद्धांत कि न केवल न्याय होना चाहिए, बल्कि न्याय होते हुए दिखना भी चाहिए। मतलब पूरी पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए। "सौ सयाने एक मत" का यह सिद्धांत पुलिस बल्कि पूरी कार्रवाई पर भी लागू होता है। यहां पर तो एनकाउंटर किए जाने के पूर्व ही लगातार काफी समय से भविष्यवाणी की जाती रही, गाड़ी उलट जाएगी, मिट्टी में मिला देंगे आदि-आदि। उक्त कथनों की बाढ़ निश्चित रूप से पुलिस प्रशासन की एनकाउंटर के वास्तविक होने (फेक नहीं) पर प्रश्नचिन्ह अवश्य लगाती है। कहीं ऐसा तो नहीं कि "हुकम हमारा जोर तुम्हारा"? साथ ही दोनों हत्या के ऊपर उल्लेखित संपूर्ण घटनाक्रम व परिस्थितियों को देखते हुए इन तीनों हत्यारों का कोई न कोई हैंडलर्स होने की ओर भी निश्चित रूप से इशारा करती है। प्रश्न फिर यह उत्पन्न होता है कि यह हैंडलर्स कौन। क्या उनका भी कोई राजनैतिक व प्रशासनिक व्यक्ति आंका है? इस हैंडलर्स के कारण इन तीनों अपराधी को भी जान का खतरा है? जिस प्रकार अपराध दुनिया में कहा जाता है अपराधी कितना ही चतुर क्यों न हो अपने पीछे सुराग छोड़ ही जाता है, जिस कारण वह बाद में पकड़ा ही जाता है। यह तथ्य इन तीनों हत्यारों पर भी लागू होता है। घटना को अंजाम देने में उक्त उत्पन्न प्रश्नों की बौछारों के जैसे जैसे उत्तर मिलते जायेगें इन अपराधियों का भी शायद वहीं अंत होगा जो जेल में जाकर सजा होने के पहले ही अतीक व अशरफ का हुआ।
न्यूज चैनल ‘‘आज तक’’ की ब्रेकिंग न्यूज हैडिंग ‘‘बिहार के सुशासन में खनन माफिया का कोहराम’’ के साथ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का कथन ‘‘उत्तर प्रदेश में कानून राज हैं,’’ से आप न्यूज चैनल की दयनीय परिस्थितियों को बखूबी समझ सकते है।
Police was negligent and relaxed nothing more than that. Ofcourse this must be investigated that who is the mentor of these three.
जवाब देंहटाएंबहुत गहन विश्लेशन,माफिया का अन्त जनहित में है, कानून स्थिति पर टिप्पणी करने में असमर्थ हूं
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