जब कभी मन की बात की जाती है, तो वह "मन व दिल" से निकलती है। इसलिए वह सत्य होती है। चूंकि वह एक "डिवाइन फ़िनाॅमिनन" है, इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद मोदी के मन से निकली बात सत्य ही होनी चाहिए। 30 अप्रैल को प्रधानमंत्री की "मन की बात" का 100 वां प्रसारण हुआ है। इस कारण से पूरे देश में 30 अप्रैल के प्रसारण को शताब्दी दिवस के रूप में हर्षोल्लास के साथ व्यापक रूप से आम जनता की भागीदारी के साथ मनाया गया। मैंने भी पहली बार सांसद के निमंत्रण पर नागरिकों के साथ बैठकर 100 वे प्रसारण को सुना। प्रधानमंत्री ने पहली बार वर्ष 3 अक्टूबर 2014 को मन की बात का प्रसारण प्रारंभ किया था, जो आज देश का एक जन आंदोलन बन गया है। प्रधानमंत्री मोदी के मन की बात कबीर की उक्ति "मैं कहता आंखन देखी" का पर्याय बन चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश के लिए यह बिल्कुल नई अनोखी पहल थी। पहले इसके कभी भी देश के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को "जनता के दिलों की गांठें खोलते हुए" उनसे सीधे इंटरेक्ट होते हुए देखा नहीं गया है, सिवाय 15 अगस्त एवं 26 जनवरी को जब देश के नाम उद्बोधन में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को अभी तक सुना जाता रहा था। या कभी प्राकृतिक आपदा, युद्ध का संकट या कोई संवैधानिक संकट खड़ा होने पर प्रधानमंत्री देश की जनता से सीधे संवाद करते थे।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस रिवाज परिपाटी (कस्टम) को तोड़ा है। प्रधानमंत्री ने अपनी कार्य पद्धति एवं प्रणाली से देश में कई नए-नए आयाम स्थापित किए हैं। उनमें से एक महत्वपूर्ण "मन की बात" भी है। "मन मनुष्य के व्यक्तित्व का दर्पण है"। फ़िल्म काजल का एक बहुत सुंदर गीत है "तोरा मन दर्पण कहलाये"।
प्रधानमंत्री द्वारा नए आयामों को स्थापित करने की सूची का यदि अवलोकन करें तो वह काफी लंबी हो जाएगी। कुछ प्रमुख है जो आगे उल्लेखित है:- स्वच्छत भारत अभियान, कोरोना काल में सबसे अधिक टीके, 150 से अधिक देशों को कोरोना काल में टीके दवाइयां आदि की सहायता दी है, जन धन योजना, मेक इन इंडिया, लोकल फॉर वोकल,सरहदों पर जाकर सैनिकों के साथ प्रत्येक वर्ष दीपावली मनाने वाले एकमात्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही रहे हैं। देश- विदेश में सबसे अधिक घूमने वाले, अभी तक के प्रधानमंत्रियों में से सबसे अधिक चुनावी सभाओं को संबोधित करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रहे हैं। 21वीं सदी के 4G, 5G के युग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यप्रणाली की एक सबसे महत्वपूर्ण विशेषता उच्च स्तर की जमकर की गई ब्रांडिंग की नई प्रणाली अवश्य रही है। मोदी अपनी हर नई नीति व प्रोग्राम की लॉन्चिंग और धरातल पर उतारने के लिए बड़े स्तर पर ब्रांडिंग कर अवसर को एक बड़े कार्यक्रम में परिवर्तित कर देते हैं, जो पूर्व के प्रधानमंत्री कभी नहीं करते रहे हैं। नरेंद्र मोदी का "आपदा को अवसर" में बदलने का नारा भी रहा है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक केंद्र सरकार की योजनाएं अथवा भाजपा शासित राज्यों की योजनाओं के विज्ञापनों में आपको हर जगह मात्र एक चेहरा सिर्फ नरेंद्र मोदी या प्रदेश की योजनाओं में प्रधानमंत्री के साथ प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के चेहरे ही दिखेंगे, जो इसके पूर्व अन्य किसी पार्टी के शासन में कभी देखने को नहीं मिला। हां सो वे एपिसोड में एक बात जरूर खटकने वाली रही। पूरा देश इस बात की उम्मीद कर रहा था, प्रधानमंत्री आज जरूर जंतर-मंतर पर धरने पर बैठी राष्ट्र की अंतर्राष्ट्रीय महिला पहलवानों जिन्होंने देश का नाम विश्व में रोशन किया है, के संबंध में दो शब्द जरूर कहेंगे? क्योंकि मोदी का एक महत्वपूर्ण आयाम बेटी बचाओ का यह एक महत्वपूर्ण भाग है। य देश की परिवार की वे बेटियां हैं जिन्होंने देश के लिए कुश्ती के खेल में गोल्ड मेडल्स प्राप्त करने पर प्रधानमंत्री ने अपने निवास पर चाय पर बुलाकर उन्हें यह कहकर सम्मानित किया था विनेश फोगाट तुम मेरे परिवार की बेटी हो।
आइए अब प्रत्येक वर्ष 30 तारीख को सत्य वचन दिवस के रूप में क्यों मनाया जाना चाहिए? इस पर मनन करते हैं। हम शौर्य दिवस, बलिदान दिवस, गांधी जयंती, बाल दिवस, शिक्षक दिवस, पंडित दीनदयाल जयंती, अंबेडकर जयंती, बिरसा मुंडा जयंती आदि अनेक महानुभाव के नाम की जयंती बनाते हैं। योग दिवस, महिला दिवस, युवा दिवस इत्यादि बनाते हैं। जहां हम इन सब गणमान्य व्यक्तियों के योगदान और महत्व को याद कर उन्हें अपने जीवन में आत्मसात करने की बात उस दिवस पर करते हैं। इसी कारण से यदि हम 30 अप्रैल को "सत्य दिवस" के रूप में मनाया जाए तो निश्चित रूप से हमें उस दिन इस बात पर सोचने का एक अवसर मिलेगा कि जिंदगी में अधिकतम सत्य वचन बोलने का प्रयास करना चाहिए। क्योंकि कहते हैं न कि "मन चंगा तो कठौती में गंगा"और सत्य वचन कहने वाला "अपनी बात का धनी होता है"। कलयुग में तो अधिकतम सत्य की ओर ही चला जा सकता है, यही संभव है, पूर्ण सत्य की ओर नहीं। क्योंकि कोई भी चीज एब्सोल्यूट (पूर्ण) नहीं होती है। तथापि पूर्ण सत्य सतयुग में राजा हरिश्चंद्र के पास ही था। यह तो एक बात हो गई। अब जरा इसके दूसरे पहलू पर भी बात कर ली जाए।
"मन की बात" जो अभी तक प्रधानमंत्री करते रहे हैं, वह अपने मन की बात करते रहे हैं या आपके मन की बात ? यद्यपि 100 वे प्रसारण पर मन की बात पर प्रधानमंत्री ने जो कुछ कहा व उद्धरण दिए, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने "जनता की मन की बात" को पढ़ने का प्रयास ज्यादा किया और पढ़ने पर जो कुछ कमियां या समस्या परिलक्षित हुई, उसको पूरा करने का प्रयास किया जिसके कुछ उदाहरण प्रधानमंत्री ने भी मन की बात में दिए। परंतु यहां इस बात पर विचार करना होगा जब "मन की बात" स्वयं के दिल की बात होती है, तब वह बिना प्रयास के (ईफोर्टलैस) "खरी बात फ़र्रूख़ाबादी" होती है। इसलिए वह शुद्ध मन की अंतर्मन, अंतःकरण की सात्विक, सत्य बात होती है। यही बात दूसरे के "मन के दरवाज़े खटखटाने" की क्षमता भी रखती है। लेकिन जब आप मन की बात में "स्वयं की नहीं बल्कि दूसरे के मन की बात" को बोलते हैं, पढ़ते हैं या पढ़ने का प्रयास करते है, तब आपको निश्चित रूप से मन के साथ दिलो-दिमाग व विवेक के उपयोग का प्रयास कुछ न कुछ करना होता है। यह प्रयास आपकी मन की बात को प्राकृतिक न रहने देकर बुद्धि व विवेक दूसरे के मन की बात करते समय लाभ-हानि का आकलन करने के कारण तब वह मन की बात पूर्ण रूप से सत्य न होकर लाभ हानि की दृष्टि के दृष्टिकोण में आ जाती है। यह बात इस तथ्य से भी सिद्ध होती है कि प्रधानमंत्री ने मन की बात के 100 वे संस्करण में किसी भी कमी का उल्लेख नहीं किया जो उन्होंने जनता के मन को पढ़ते हुए महसूस की और न ही उन कमियों को दूर करने की भविष्य की कोई योजना का उल्लेख किया। हालांकि यह व्यक्ति का मूल अधिकार होता है कि वह 'लाभ-हानि" को ध्यान में रखते हुए आपकी मन की बात को अपने मन के माध्यम से कह सके। वैसे सामान्यतया यह कहा जाता है, विवेकशील होने के लिए व्यक्ति को अपनी बुद्धि विवेक कौशल से काम करना चाहिए। परंतु "जो हृदय-मन की गहराइयों से बात करते हैं, उन्हें बुद्धि से जवाब देना उचित नहीं"। इस सत्य के बावजूद मेरा यह दृढ़ मत है कि 30 अप्रैल को सत्य दिवस को पूरे देश में अगले वर्ष से मनाया जाना चाहिए। इससे कम से कम हमें आत्म मनन चिंतन व सोचने का एक अवसर मिलेगा, जब हम यह सोच कर रूप से गर्व महसूस करेंगे कि हम राजा हरिश्चंद्र के पीढ़ी दर पीढ़ी के लोग है। इसलिए इस एक अवसर पर हम कम से कम पूर्ण सच नहीं तो अधिकतम सच बोलने का प्रण लेकर उस दिशा में अग्रसर होने का प्रयास अवश्य कर सकते हैं।
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