आखिर हिंसा की आग कब बुझेगी?
यौनाचार के अपराधियों के बढ़ते महिमामंडित करने का परिणाम: मणिपुर कांड!
कठुआ, बिलकिन बानो, मुजफ्फरनगर, राम-रहीम, ब्रज भूषण शरण सिंह आदि दुष्कर्म काडों को महिमामंडित किए जाने के कारण तथा शिक्षण संस्थानों (शिक्षा मंदिर) जैसे हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज, दून तथा पंतनगर विश्वविद्यालय में हो रही यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर कोई कार्यवाही न होने के कारण भी बढ़ रही यौन हिंसा व दुराचार के दुष्परिणाम का विस्तार ही मणिपुर का वह गंदा व वीभत्स वायरल वीडियो है, जिसके कारण मणिपुर पर चुप रहे प्रधानमंत्री को बोलना पड़ा है। 4 मई को मणिपुर की राजधानी इंफाल से 35 कि.मी. दूर कांगपोकपी जिले के मैतई बहुल थोबल में हुई घटना की 16 तारीख को पीडित की मां की ‘सेकुल’ थाने में शून्य प्राथमिकी दर्ज हो जाने के लगभग एक महीने बाद 13 जून को ‘जीरो’ एफआईआर क्षेत्राधिकार वाले थाने ‘पारेपैट’ में हस्तांतरित की जाती है। तब भी कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। जब तक कि वीडियो वायरल नहीं हो जाता है। प्राथमिकी भारतीय दंड संहिता की धारा 153-ए, 397,398, 392, 326 302, 427, 456, 448, 354, 364 एवं धारा 34 तथा शस्त्र अधिनियम की धारा 25(1सी) 376 के तहत दर्ज की गई। धारा 302 जो पूर्व में दर्ज नहीं थी, सीबीआई के द्वारा प्रकरण हाथ में लेने के बाद दर्ज की गई।
खुफिया तंत्र की असफलता!
19 जूलाई को दो महिलाओं के उत्पीड़न का वीडियो जहां घटना में वास्तव में तीन महिलाओं (जिनमें से एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था) के साथ अमानवीय पाशविक व्यवहार किया गया था, के सामने आते ही मुख्यमंत्री ने अमानवीय कृत्य पर संवेदना व्यक्त करते हुए यह कथन किया कि घटना का स्वतः संज्ञान लेते हुए पुलिस हरकत में आयी और एक अपराधी को तुरंत 24 घंटे के भीतर गिरफ्तार कर लिया गया। मुख्यमंत्री आगे यह भी कहते हैं कि ऐसी ‘‘सैकड़ो शिकायते’’ है। उच्चतम न्यायालय ने भी वीडियो आने के बाद इसका स्वतः संज्ञान लेकर आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिये। न्यायालय ने सख्त लहजे में कहा कि अगर सरकार कार्रवाई नहीं करेगी, तो हम करेंगे। उच्चतम न्यायालय ने लगातार तीन दिन की सुनवाई के दौरान यह भी कह दिया है कि यह सिर्फ एक वीडियो तक सीमित नहीं है। लगभग 5500 से अधिक प्राथमिकी दर्ज हुई है, जिनमें से की जांच सीबीआई ने मात्र 7 प्राथमिकी दर्ज कर जांच प्रारंभ की है। उच्चतम न्यायालय द्वारा इन दर्ज 5500 प्राथमिकी का वर्गीकृत विवरण मांगने पर उस केंद्र सरकार ने जवाब देने के लिए एक महीने का समय मांगा, जिसने स्वयं अनुच्छेद 355 लागू कर बढ़ी हुई जिम्मेदारी को ओढ़ा। अभी तक कुल 10 अपराधियों (जिसमें एक नाबालिग शामिल है) को गिरफ्तार किया जा चुका है। इसका मतलब साफ है कि या तो राज्य में खुफिया तंत्र असफल हो गया। इसे ही कहते हैं ‘‘अंधे अंधा ठेलिया, दोनों कूप पडंत’’। अथवा यदि ‘तंत्र’ की जानकारी में थी, मतलब तंत्र के असफल होने का आरोप गलत है, तब फिर कार्रवाई क्यों नहीं की गई? जब तक कि मामला वीडियो के माध्यम से ‘‘सार्वजनिक’’ नहीं हो गया।
सरकार की असफलता एवं अकर्मण्यता!
दूसरा! जब यह तथ्य सामने आ चुका है कि शिकायत किए जाने के लगभग एक महीने बाद भले ही देरी से एफआईआर दर्ज हुई, तब वहां से लेकर गिरफ्तारी तक संबंधित थाने के थानेदार से लेकर आईजी तक द्वारा कोई कार्रवाई न किए जाने के कारण मुख्यमंत्री ने उनको नौकरी से बर्खास्त क्यों नहीं किया? न ही अभी तक भी कोई कार्रवाई करने का संकेत दिये हैं। इसका अर्थ यह क्यों यह नहीं निकाला जाए कि पुलिस तंत्र ने मुख्यमंत्री के पास जानकारी भेजी होगी, इसलिए अधिकारियों के विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं गई? क्या इस कारण से एक अतिवादी विवादित तथाकथित आरोप कि यह राज्य द्वारा प्रायोजित हिंसा है, को कुछ बल नहीं मिलता है? आखिर ‘‘उंट की चोरी झुके-झुके तो नहीं हो सकती’’। मुख्यमंत्री ने इस्तीफे की नौटंकी क्यों की? राष्ट्रीय महिला आयोग के पास शिकायत को 12 जून को शिकायत भेजने (अध्यक्ष रेखा शर्मा ने 12 तारीख को शिकायत प्राप्त होने से इंकार किया हैं) के बाद यदि राज्य सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया तो, क्या महिला आयोग कार्रवाई नहीं करेगा? "कदली और कांटों में कैसी प्रीत"। और क्या दूसरे प्रदेशों में शोषण व उत्पीड़न की शिकायत आने पर क्या महिला आयोग ने अपने अधिकारी नहीं भेजे है?
प्रधानमंत्री की समझ में न आने वाली चुप्पी?
याद कीजिए! मणिपुर विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री का यह कथन मणिपुर मेरा है, अपना है, मैं यहां इतने बार आया हूं जिनकी गिनती करना संभव नहीं है। जितने भी प्रधानमंत्री अभी तक आये है, उनसे कहीं ज्यादा बार मैं आया हूं। फरवरी 2017 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह ट्वीट ‘‘जो लोग राज्य में शांति सुनिश्चित नहीं कर सकते है, उन्हें मणिपुर पर शासन करने का अधिकार नहीं है’’। मणिपुर प्रेमी, घुमक्कड़ प्रधानमंत्री की जरूरत के वक्त सुलगते मणिपुर में जाकर आग को अपने प्रयासों से ठंडा करने के लिए न पहुंचना, आज तक भी न पहुंचना तथा हिंसा के संबंध में एक शब्द भी न बोलने का क्या अर्थ निकला जाय? यही कि मूक बधिर बन जाना बचाव का श्रेष्ठ उपाय है? गोया कि ‘‘आंख फूटी पीर गई, कान गयो सुख आयो’’।
हिंसा प्रारंभ होने के 79 दिन बाद मणिपुर (तब भी हिंसा पर एक शब्द नहीं) पर आया माननीय प्रधानमंत्री का बयान पूरे मीडिया और राजनीतिक दलों की हवा, रूख व नरेशन को ही बदल देता है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि इस देश में क्या ‘‘बुद्धि का अकाल’’ हो गया है? विपक्ष व मीडिया के एक भाग द्वारा मणिपुर पर प्रधानमंत्री के बयान की मांग अनुरूप ही क्या प्रधानमंत्री का उक्त बयान आया है? जहां मणिपुर की हिंसा का के बाबत एक शब्द भी न कहा हो। प्रधानमंत्री के 36 सेकेंड के मणिपुर पर बयान को ध्यान पूर्वक सुनिये! संसद में नहीं, संसद परिसर में दिये गये बयान में उन्होंने महिलाओं के साथ हुई घटना का जिक्र करते हुए गहरा छोभ व्यक्त करते हुए कहा घटना ने पूरे देश को शर्मसार किया है। मोदी ने कहा कि ‘‘मणिपुर की बेटियों के साथ जो हुआ, उस पर मेरा हृदय पीड़ा और क्रोध से भरा है, जिन्होंने ये कृत्य किया उन्हे माफ नहीं करेंगे। लेकिन प्रधानमंत्री ने उक्त बयान में क्रमानुसार राजस्थान, छत्तीसगढ़ (परंतु भाजपा शासित राज्यों उत्तर प्रदेश आदि का उल्लेख नहीं) फिर मणिपुर का ‘‘एक तवे की रोटी, क्या पतली क्या मोटी’’ के रूप में उल्लेख किया। जो मणिपुर की घटना की वीभत्सा को कहीं न कहीं ‘कमतर’ करता है। क्योंकि इस तरह की महिला के साथ यौन अत्याचार तथा वस्त्रहीन कर सार्वजनिक परेड कर और उसके बचाव में पिता व भाई के आने पर उनकी हत्या करने जैसे घटना नहीं हुई है।
राजनैतिक दलों द्वारा "धर्म नीति" के बजाय "राजनीति"!
प्रधानमंत्री के इस बयान को किसी भी तरह मणिपुर की हिंसा पर बयान नहीं कहा जा सकता है, (जैसा कि राज्यपाल ने हिंसा के बाबत कहा है), जिसकी मांग लगातार 78 दिनों से की जा रही थी। यह तो वीडियो वायरल होने के संबंध में देने (दूसरे दिन) वाला ही बयान ही कहलायेगा। प्रधानमंत्री द्वारा हिंसा की घटना पर एक शब्द न बोलने व शांति की अपील न करने के साथ ही घटना स्थल पर और पीड़ित परिवार वालो से मिलने व ढांढस पहुंचाने कितने राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता पहुंचे? क्या इसलिए कि थोबल ग्राम जहां यह दरिदगी घटी; देश के दूरस्थ उत्तर पश्चिम प्रदेश का भाग था? इसलिए वहां जाना उचित नहीं समझा? उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश या अन्य किसी क्षेत्र मध्य भारत में घटित हो जाती, तो नेतागण पहुंच जाते? क्या इसलिए भी पीड़ित दबे, कुचले जनजाति समुदाय के लोग थे? विपरीत इसके 32 लाख की जनसंख्या वाले मणिपुर ने जहां 50 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दिए हैं, के खेल रत्न, अर्जुन, द्रोणाचार्य व अन्य पुरस्कार प्राप्त विभिन्न खिलाड़ियों, मीराबाई चानू, अनीता चानू, एन कुंजारानी देवी, एल सरिता देवी, संध्या रानी देवी, विमोल जीत सिंह, इबोला सिंह आदि द्वारा पत्रकार वार्ता या संदेश भेज कर शांति की अपील की है। 16 वर्षो तक मानवाधिकारी की लडाई लड़ने वाली महिला विश्व प्रसिद्ध इरोम शर्मिला मणिपुर की ही थी, जिस के बारे में कहा जाता है कि "कर्ता से कर्तार हारे। "कश्मीर फाइल", "द केरला स्टोरी" बनाने वाले फिल्म निर्माता की क्या अगली कड़ी ‘‘मणिपुर हैवानियत’’ होगी?
तत्काल राष्ट्रपति शासन लागू हो!
प्रश्न यह है कि आज भी इस समस्या की जड़ की तह तक कोई नहीं जाना चाहता है। क्योंकि तब राजनीति चमकाने का अवसर कहां मिलेगा? महामहिम राज्यपाल ने वीडियो वायरल होने के बाद गहरा क्षोभ व्यक्त करते हुए यह कहा कि ऐसी हिंसा उन्होंने कभी नहीं देखी। यह भी कहा कि मैंने ‘‘ऊपर तक’’ अपनी बात पहुंचा दी है। अप्रैल के अंत तक पुलिस व कुकी समुदाय के बीच चल रहा संघर्ष आगे कुकी व मैतोई समुदाय के बीच संघर्ष में बदल गया जो न तो एक तरफा है, और न ही पूर्णत: धार्मिक। बल्कि मादक पदार्थ (अफीम) के व्यापार को मणिपुर सरकार द्वारा कुचलने की की गई कार्रवाई की प्रतिक्रिया भी इस हिंसा में शामिल है। क्या राज्यपाल ने लगभग 3 महीने से चल रही इन सब हिंसक घटनाओं और महिलाओं के साथ हुए अत्याचार के कारण संवैधानिक तंत्र के ध्वस्त हो जाने से राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश की है? इसका खुलासा तो महामहिम ही कर सकती हैं। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी इस मामले में बेहद सावधानी से रिपोर्टिंग करने की अपील की है, इससे भी मामले की गंभीरता को समझा जा सकता है। बड़ा प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि क्या राष्ट्रपति शासन का उपयोग सिर्फ राज्य को अस्थिर करने व अपनी सरकार को स्थिर करने में राजनीतिक आधार पर ही किया जाएगा? जैसा कि शुरू से होता चला आ रहा है। ‘‘पार्टी विथ डिफरेश’’ का नारा देने वाली भाजपा ने इस ‘‘परिपाटी’’ को आमूल चूल रूप से खत्म करने की बजाय पार्टी ‘‘भाई गति सांप छछूंदति केरी’’ की अवस्था को क्यों प्राप्त हो गयी? राजनीति जरूर कीजिए, क्योंकि आप राजनेता है। परन्तु राजनीतिक दल राजनीतिक करते-करते इस निम्न स्तर तक गिरते जा रहे हैं कि एक दिन ऐसा भी आयेगा, जब ‘‘स्तरहीन राजनीति’’ के कारण ‘‘राजनीति’’ करने की परिस्थितियां व अवसर ही समाप्त हो जायेगी। तब ‘‘स्तरहीन राजनीति’’ करने का भी अवसर कहां मिलेगा? इस बात को यदि समझ ले तो, कुछ ज्यादा समय तक राजनीति कर पायेगें।
स्तरहीन राजनीति!
स्तर हीन राजनीति का ही परिणाम है कि पक्ष-विपक्ष दोनों संसद में मणिपुर के मुद्दे पर बहस के लिए तैयार हैं, ऐसा गला फाड़ फाड़ कर जनता को सुना व दिखा रहे हैं। बावजूद इसके मणिपुर के मुद्दे पर विशिष्ट बहस हो ही नहीं पा रही है। मतलब "मुंह में राम बगल में छुरी"। मतलब दोनों पक्ष चर्चा से भाग रहे हैं। तथापि विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर अवश्यंभावी बहस होने का लाने का तरीका निकाला। जिसका सत्तापक्ष ने इसलिए स्वागत किया कि वह विपक्ष को मणिपुर के अतिरिक्त अन्य मुद्दों को लेकर प्रधानमंत्री के धारदार भाषण से घेर सकेगा । परंतु सबसे आश्चर्य जनक बात यह है कि सरकार के संसदीय कार्य चल रहे हैं, बिल प्रस्तुत होकर पारित हो रहे हैं जबकि परिपाटी के अनुसार अविश्वास प्रस्ताव अध्यक्ष द्वारा स्वीकार करते ही अन्य संसदीय कार्य तुरंत सस्पेंड (स्थगित) कर अविश्वास प्रस्ताव पर बहस कराई जाती है। वही दूसरी ओर विपक्ष भी सरकार के दिल्ली सरकार के अधिकार के संबंध में जारी किए गए अध्यादेश पर कानून बनाने के लिए सरकार द्वारा प्रस्तुत विधेयक पर चर्चा के लिए तैयार है, हंगामा बहिष्कार नहीं कर रहा है। इससे राजनेताओं की दोगली नीति स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होती है।
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