‘‘पहले आओ पहले पाओ’’ की तर्ज पर ‘‘खुला निमंत्रण’’ होना चाहिये।
आखिर वह क्षण (पल) आ ही गया, जब भगवान श्री राम में आस्था रखने वाले, आराध्य मानने वाले इस सृष्टि के प्रत्येक इंसान (भक्त) का सपना 22 जनवरी 2024 को पूरा होने जा रहा है। देश के अब तक के सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री (इंदिरा गांधी से भी ज्यादा) नरेन्द्र मोदी के हाथों साधु-संतों की उपस्थिति में जन्म स्थल अयोध्या में ‘‘भगवान श्री राम मंदिर’’ का उद्घाटन और ‘‘प्राण प्रतिष्ठा’’ होने जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी की कार्ययोजना की एक विशिष्ट विशेषता यह है कि जिस योजना की आधारशिला रखी जाएगी, उसका उद्घाटन भी वे ही करेंगे। जो अन्य राजनेताओं में कम ही होती है। अर्थात ‘‘समय बद्ध’’ योजना के अंतर्गत ही भगवान श्री राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है। ‘‘श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट’’ द्वारा प्रधानमंत्री सहित लगभग 4000 से अधिक संत-महंत, संवैधानिक पदों पर बैठे माननीयों के अलावा देश के विभिन्न अंचलों में, विभिन्न कार्यक्षेत्रों में बैठे काम करने वाले चुनिंदा लोगों लगभग 2500 से अधिक व्यक्तियों, को ही निमंत्रित किया जा रहा है। स्टार, सेलिब्रिटी (हस्तियां) चाहे वे राजनीतिक क्षेत्र की हो, खेल, कला, पत्रकारिता, साहित्यिक, व्यापारिक, उद्योग जगत क्षेत्र की हो आदि या अन्य किसी भी क्षेत्र की हो, उनमें से कुछ प्रमुख लोगों को ही निमंत्रण पत्र भेजा जा रहा है। राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति को निमंत्रण भेजने की उनकी उपस्थिति के संबंध में अभी तक स्थिति अस्पष्ट है। निमंत्रण पत्र भेजने का आधार क्या है? यह भी स्पष्ट नहीं है।
निश्चित रूप से इस ऐतिहासिक व अभिभूत करने वाले अवसर पर सबसे पहला अधिकार लगभग 500 से ज्यादा वर्षो से जो साधु-संत व्यक्ति, संगठन इस आंदोलन में लगे रहे है, वे उनकी वर्तमान पीढ़ी परिवार और विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, शिवसेना (हिंदू महासभा जो मुकदमा लड़ रही थी) से लेकर अन्य अनेक संगठन जिनके अनवरत अथक प्रयासों ने यह विराट स्वरूप दिया है, और ‘‘राम लला’’ जन्मभूमि मंदिर के सपने को हकीकत में उतारा जा रहा है, वे सब हजारों नागरिक जिन्होंने रामजन्म मंदिर निर्माण के लिए हुए विभिन्न स्तरों में हुए आंदोलन में भाग लिया, देश के विभिन्न अंचलों में ‘राम’ ईंट एकत्रित की गई और कई कार सेवकों ने अपना बलिदान दिया और कई तरीके से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से इस निर्माण में योगदान दिया है, वे सब भी निमंत्रण के यथोचित पात्र है। साथ ही मंदिर निर्माण में लगे मजदूर भी निमत्रिंत होने के अधिकारी है।
निमंत्रण भेजने के आधार के स्पष्ट न होने से एक कौतूहल अवश्य उत्पन्न होता है कि निमंत्रण पत्र को उक्त तरीके से भेजे जाने से क्या ‘‘जाने-अनजाने’’ में समाज में नया वर्ग भेद उत्पत्ति की संभावना तो नहीं हो जायेगी। भगवान तो कण-कण में व्याप्त है व सबकी आस्था के प्रतीक (सिर्फ नास्तिकों को छोड़कर) है। इस प्रकार भगवान सब की पहंुच में है। लेकिन सिर्फ हिंदू ही नहीं, सर्व धर्म-सम भाव का पालन (कुछ अपवादों को छोड़कर) करने वाला देश का प्रत्येक नागरिक, साथ ही दूसरे धर्मो में आस्था रखने वाले देश के नागरिक को भी गौराविंत करने वाले इस महत्वपूर्ण अवसर पर उपस्थित होने की इच्छा अवश्य रहेगी। परन्तु प्रश्न यह है कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों के अनुरूप अंत्योदय के अंतिम छोर में खड़े हुए व्यक्ति को अपने आराध्य भगवान श्री राम के ‘‘प्राण-प्रतिष्ठा’’ के दुर्लभ शुभ अवसर पर अपनी ‘‘नग्न आंखों’’ से दर्शन करने की पात्रता सिर्फ इसलिए नहीं होगी? क्योंकि उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है। मुझे ख्याल आता है कि एक समय महाकाल मंदिर उज्जैन में भस्म आरती के दर्शन के लिए रात्रि 3 बजे से लाइन में खड़े रहकर दर्शन सुनिश्चित करने का प्रयास करते थे।
होना तो यह चाहिए था कि जिन लोगों ने इस आंदोलन में अपना सब कुछ स्वाहा कर महत्वपूर्ण योगदान दिया, उन सबको तवज्जों देकर देश के शेष समस्त नागरिकों कों खुला निमंत्रण दिया जाता और ‘‘फ़स्ट कम फस्ट सर्व’’ (पहले आओ पहले पाओे) की नीति के आधार पर वहां उन्हें प्रवेश व बैठने की व्यवस्था की जाती। ‘‘दिल में होय करार, तब सूझे त्योहार’’। तब किसी को यह कहने का अवसर उत्पन्न नहीं होता कि एक राम भक्त होने के बावजूद इस अवसर पर उसे सिर्फ इस आधार, उपस्थिति होने का अवसर नहीं मिल पाया, क्योंकि वह अंतिम छोेर पर खड़ा हुआ एक सामान्य नागरिक है। ‘‘दीन सबन को लखत है दीनहिं लखै न कोय’’। न तो वह उद्योगपति, साहित्यकार, पत्रकार, लेखक, कलाकार, खिलाड़ी, सेवाकर्ता, डॉक्टर, इंजीनियर या अन्य कोई शेष किसी क्षेत्र का यशवशी ‘‘स्टार’’ आधार (सेलिब्रिटी) नहीं है। इसलिए वह निमंत्रण पत्र का अधिकारी नहीं। ‘‘श्रीमंतों को दावत तो सर्वहारा से अदावत क्यों‘‘? मैं यह समझता हूं कि इस पर गहनता से विचार करने की आवश्यकता है और देश के प्रत्येक नागरिक का धार्मिक कर्तव्य है, संवैधानिक अधिकार है कि वे अपने ‘‘राम लला’’ को स्वयं की आंखों से साक्षात् दीदार कर साष्टांग दंडवत प्रणाम कर आशीर्वाद लेने का अधिकार हो। कितना संभव हो पायेगा यह उनके प्रयास पर छोड़ देना चाहिए। भगवान के कार्यक्रम का निमंत्रण व्यक्तिगत कैसे हो सकता है, जैसे कि आमंत्रण पत्र के नियम में उल्लेखित है, यह भी समझ से परे है।
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