//संस्मरण// ‘‘तांगे में बैठकर बस स्टैंड गये’’
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कर्पूरी को भारत रत्न दिए जाने पर लिखे मेरे लेख पर भोपाल निवासी श्री नरेंद्र भानू खंडेलवाल ने मुझे फोन पर कर्पूरी ठाकुर की सादगी, जो उन्होंने देखी व जिसके प्रत्यक्षदर्शी मेरे पिताजी स्वर्गीय श्री जी डी खंडेलवाल रहे, का रूबरू वर्णन में आगे कर रहा हूं, जैसा की श्री नरेंद्र भानू खंडेलवाल ने मुझे फोन पर बतलाया।
मेरे पिताजी स्वर्गीय श्री गोवर्धन दास जी खंडेलवाल वर्ष 1967 में बनी संविद सरकार जिनकी जनक व नेत्री स्वर्गीय राजमाता विजयाराजे सिंधिया थीं, के मुख्यमंत्री ठा. गोविंद नारायण सिंह के मंत्रिमंडल में पहले समाज कल्याण विभाग के राज्य मंत्री और बाद में आदिम जाति कल्याण एवं बिजली विभाग के कैबिनेट मंत्री जनसंघ कोटे से रहे। हम लोग उस समय प्रोफेसर कॉलोनी में चार बंगले के बंगला नंबर तीन में रहते थे, जहां बाद में कभी सुश्री उमा भारती भी रहीं।
बात उस समय की है, जब डॉ राम मनोहर लोहिया के ‘‘गैर कांग्रेस वाद’’ के नारे व नीति के चलते वर्ष 1967 में देश में संविद सरकारें बनने का दौर चला था। मध्य प्रदेश में ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल आदि प्रदेशों में भी संयुक्त विधायक दल की (संविद) सरकारें गैर कांग्रेस वाद के आधार पर बनी थी। संपूर्ण देश में गैर कांग्रेसी वाद को मजबूत करने के लिए समस्त विपक्षी दलों को एक साथ खड़े रखने की नीति को मजबूत करने के तहत शायद पार्टी निर्देशों के तारम्तय में मेरे पिताजी जी डी खंडेलवाल जी ने उस समय की समस्त संविद सरकारों के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री को विचार विमर्श करने के लिए एक बैठक अपने निवास, चार बंगले में बुलाई थी। तब कर्पूरी ठाकुर, जो उस समय बिहार के उपमुख्यमंत्री थे, भोपाल हमारे निवास पर आए थे। उस समय पंडित दीनदयाल उपाध्याय, राजमाता विजयाराजे सिंधिया व उपमुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा भी बैठक में उपस्थित थे। पंडित दीनदयाल जी की सादगी का आलम यह था कि एक पत्रकार ने जब यह पूछा कि दीनदयाल जी भी आए हैं? तब उनको यह बतलाया गया कि आपके सामने जो अभी चप्पल पहने जा रहे हैं, यही दीनदयाल जी हैं।
मीटिंग समाप्ति के बाद कर्पूरी ठाकुर जी को इंदौर एक निजी कार्यक्रम में जाना था। वे बस से इंदौर जा रहे थे। नरेंद्र भानू खंडेलवाल, जो उस समय हमारे पारिवारिक सदस्य थे और मैं और मेरा छोटा भाई उनके द्वारा चलाई जारी शिक्षा क्लासेस में पढ़ने भी जाते थे, घर पर उपस्थित थे। कर्पूरी ठाकुर जी को बस स्टैंड छोड़ने के लिए कार में बैठने के लिए नरेंद्र जी ने कहा तो उन्होंने कहा मैं सरकारी गाड़ी का उपयोग नहीं करूंगा, क्योंकि मैं निजी यात्रा पर जा रहा हूं। तब नरेंद्र जी स्वयं ‘‘तांगे’’ पर उनको लेकर बस स्टैंड छोड़ने गए और 5 रू 50 पैसे की इंदौर की बस का टिकट कटवाया। वह पैसे भी कर्पूरी ठाकुर ने ही दिए, यह कहकर कि जब मैं कार से बस स्टैंड नहीं आया हूं, निजी यात्रा पर जा रहा हूं, आपसे पैसे कैसे ले सकता हूं? सादगी के इस रूप की कल्पना आज तो संभव ही नहीं है, ओढ़ना तो दूर की बात है। इसी सादगी में मैं अपने स्वर्गीय पिताजी की सादगी को भी जोड़ना चाहता हूं। संविद सरकार में शामिल जनसंघ घटक के समस्त मंत्रियों को जब ‘‘कच्छ आंदोलन’’ में भाग लेने के लिए मंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए कहा गया। तब मेरे पिताजी इस्तीफा पत्र लेकर घर से गवर्नर हाउस सरकारी गाड़ी से नहीं गए, बल्कि स्कूटर से गए और उस समय स्कूटर पर जाते हुए उनकी फोटो समाचार पत्रों में छपी थी। तब कोई सोशल मीडिया नहीं था। हम दोनों भाई भी स्कूल पॉलिटेक्निक बस स्टॉप से बस पकड़ कर जवाहर चैक माडल स्कूल जाते थे, जबकि अन्य मंत्रियों के बच्चों को स्कूल छोड़ने सरकारी गाड़ियां जाती थी।
कर्पूरी ठाकुर की ऐसी सादगी को नमन। मैं नरेंद्र जी का हृदय की गहराई से धन्यवाद करना चाहता हूं कि मुझे उन्होंने उक्त तथ्यों से अवगत कराया, जिसकी जानकारी मुझे अभी तक नहीं थी।
सादगी का उक्त वर्णन जैसा कि नरेंद्र भानू खंडेलवाल जी ने बतलाया।
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