भ्रष्टाचार ‘‘विमुक्त’’ कांग्रेस! क्या संभव है?
कांग्रेस ‘‘मुक्त’’ भारत का नारा 2013ः-
देश की जन मानस को अच्छी तरह से याद है, लोकप्रिय प्रधानमंत्री का वह बहुचर्चित प्रचारित नारा-ः ‘‘कांग्रेस मुक्त भारत’’! वर्ष 2013 में नरेन्द्र मोदी जिन्हें वर्ष 2014 में होने वाले लोकसभा के आम चुनाव के लिये, भाजपा नेतृत्व ने चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया था, ने तब यह कहा था कि मेरा सपना कांग्रेस मुक्त भारत निर्माण का पूरा होना चाहिए। वर्ष 2018 में उन्होंने इस आगे स्पष्ट करते हुए कहा कि कांग्रेस मुक्त भारत के नारे से मतलब कांग्रेस को राजनीतिक रूप से समाप्त करने से नहीं है, बल्कि देश को कांग्रेस संस्कृति से मुक्त कराने के साथ ही स्वयं कांग्रेस को भी अपनी संस्कृति से मुक्त होने से है, जो देश हित में स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी हैं। आखिरकार कांग्रेस की संस्कृति हैं क्या? जवाब यही मिलेगा! ‘‘भ्रष्टाचार के कंठ में गले तक डूबी हुई संस्कृति नहीं कृति’’।
महात्मा गांधी का सपना ‘‘कांग्रेस को भंग’’ कर देना चाहिए।
वर्ष 1948 में पंडित नेहरू के कार्यकाल के ‘‘जीप खरीद घोटाला’’ जिसमें केन्द्रीय मंत्री के. कृष्ण मेनन को इस्तीफा तक देना पड़ा था, से लेकर 2013 तक यूपीए सरकार में कई कांडों, धोटालों की भरमार रही, जिसके कारण ही अन्ना का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन भी हुआ। वर्ष 2019 में संसद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह कहा था कि ‘‘कांग्रेस मुक्त’’ का नारा मेरा नहीं बल्कि ‘‘महात्मा गांधी का एक सपना था’’ और उनके प्रति श्रद्धांजलि के बतौर यह कार्य ‘‘पूरा करना’’ ही करना है। आगे उन्होंने यह भी कहा कि अंबेडकर ने भी यह कहा था कि कांग्रेस में शामिल होना, आत्महत्या करने के समान है। परन्तु 10 साल के भाजपा शासन काल के बावजूद अभी तक यह संभव नहीं हो पाया है और न ही भविष्य में होने की संभावनाएं दूर-दूर तक दिखती प्रतीत होती हैं।
कांग्रेस ‘‘युक्त’’ भाजपा 2024ः-
भाजपा ने शायद इसीलिए वर्ष 2013 की अपनी कांग्रेस मुक्त भारत की नीति में परिवर्तन किया, और 2024 के आते-आते कांग्रेस मुक्त भारत की जगह ‘‘कांग्रेस युक्त भाजपा’’ की ओर तेजी से कदम बढ़ाने की कार्य योजना बनाई गई हैं, जो तेजी से सफलता के कदम भी चूम रहीं हैं। बगैर किसी तकल्लुफ के क्योंकि ‘‘तकल्लुफ में है तकलीफ सरासर’’। इसके लिए ‘‘बीच भंवर में तिनके का सहारा ढूंढ़ते’’ कांग्रेसियों को भाजपा में लाने के लिए न केवल (स्पेशल सेल) र्ज्वाइनिग कमेटी कई राज्यों से बनाई गई हैं, बल्कि 45वंे स्थापना दिवस के दिन मध्य प्रदेश में ही एक लाख कांग्रेसियों को भाजपा में लाने का लक्ष्य भी रखा गया था। दल-बदल विरोधी कानून होने के बावजूद ‘‘एडीआर’’ की एक रिर्पोट के अनुसार वर्ष 2014 से 2021 तक विधायक-सांसद स्तर के 426 नेताओं ने बीजेपी का दामन थामा है, जिनमें कांग्रेस के 10 पूर्व मुख्यमंत्री (】अभी तक) शामिल है। वैसे सोशल मीडिया में इस संबंध में इस कदम पर एक चुटकी अवश्य ली जा रही है कि इन ‘‘फूल छाप कांग्रेसियों’’ को भाजपा में लाने की आवश्यकता ही क्या है? जब पहले से ही 50-60 प्रतिशत ऐसे कांग्रेसी भाजपा के लिए कार्य कर रहे थे। क्योंकि पार्टी में लाने के बाद तो उनमें से कुछ एक को तो पदों पर नवाजना भी पड़ेगा और इस कारण से भाजपा के ‘‘हकदार’’ कार्यकर्ताओं का ‘वैद्य’ हक समाप्त होगा। जैसा कि वर्तमान में 7 राज्यों की भाजपा की कमान दल-बदलुओं के पास है।
कमल छाप साबुन के साथ भाजपा की वाशिंग मशीन-
भाजपा ने अभी कांग्रेसियों को भाजपा में लाने की जो नीति बनाई है, उसकी सफलता और नैतिकता पर कोई प्रश्नचिन्ह न लगे, इसके लिए यह आवश्यक हो गया था कि पार्टी में आने वाले कांग्रेसी जो भ्रष्टाचार की जन्मदाता व पर्यायवाची कांग्रेस के होने से अधिकांशतः भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, को भ्रष्टाचार के ऊपरी आवरण से मुक्त कर दिया जाए, तब भाजपा को इन्हें लेने में कोई परेशानी नहीं होगी। इसीलिए ‘‘कमल छाप साबुन के साथ भाजपा की वाशिंग मशीन’’ में इन भ्रष्ट कांग्रेसियों को धोकर स्वच्छ कर शामिल किया जा रहा है। इस वाशिंग मशीन का ‘‘डेमो’’ प्रदर्शन प्रेस वार्ता के माध्यम से टीवी चैनलों पर न केवल कांग्रेस दिखा रहीं है, बल्कि पूरा विपक्ष एक आवाज में इस मुद्दे को उठा भी रहा है। परन्तु अनजाने में बच के इस कथन का एक मतलब तो यही निकलता है कि विपक्ष स्वयं यह मानता है कि भाजपा वह संस्कृति वाली पार्टी है, जहां भ्रष्टाचार का नहीं बल्कि ईमानदारी का बोलबाला है, जो भ्रष्ट आदमी को सुधार कर ईमानदार बना देती है, भले ही उनका ‘‘तन मोर सा, लेकिन मन चोर सा हो’’।
मोदी की भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कार्रवाई की "गारंटी"-
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बार-बार यह कहते थकते नहीं हैं कि न खाऊंगा न खाने दूंगा। इस पर वे पूर्णतः अमल भी कर रहे हैं। ‘‘भ्रष्टाचारियों से मोदी ड़रने वाला नहीं हैं’’। एक-एक भ्रष्टाचारी को जेल की सलाखों के पीछे भिजवाने का कथन भी न केवल वे बार-बार कह रहे हैं, बल्कि भिजवा भी रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का वह कथन आज भी सबके सामने है कि हम दिल्ली से 100 पैसे भेजते हैं, पर उसमें से 15 पैसे ही जनता तक पहुंच पाते हैं, अर्थात 85 प्रतिशत का भ्रष्टाचार कांग्रेस शासन काल का प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने स्वयं स्वीकारा था।
कानून अपना काम कर रहा हैः-
इसमें कोई शक नहीं है कि भाजपा की वाशिंग मशीन में इन भ्रष्ट कांग्रेसियों को डाला अवश्य गया है, परंतु मशीन से निकलने के बाद अर्थात भाजपा में शामिल होने के बाद देश के किसी भी भाजपाई नेता ने न तो यह दावा किया है और न ही यह प्रमाण पत्र दिया है कि जिन भ्रष्ट कांग्रेसियों को पार्टी में शामिल किया है, वे सब ईमानदार हो गए हैं या उन पर भाजपाईयों द्वारा भ्रष्टाचार के जो आरोप पहले लगाए थे, वे सब झूठे या गलत थे। बल्कि भाजपा का इन भ्रष्ट कांग्रेसियों को पार्टी में शामिल करने के संबंध में स्टैंड यही रहा है कि यदि वे भ्रष्टाचारी हैं, उनके खिलाफ आरोप है, मुकदमा चल रहा है, तो वह चलेगा। ‘‘कानून अपना काम करेगा’’। हमने कानून की प्रक्रिया में कोई अड़ंगा नहीं डाले हैं। जांच प्रक्रिया को आगे बढ़ना जांच एजेंसियों का काम है, सजा देना न्यायालय का काम है, हमारा नहीं। यदि किसी को भी यह लगता है कि भाजपा में शामिल हुए इन नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है, तो वह न्याय पाने के लिए न्यायालय में जाने के लिए स्वतंत्र है।
एक तरफा "विपक्षी नेताओं" पर ईडी की कार्रवाईः-
कहते है कि ना ‘‘ताड़ने वाले भी कयामत की नजर रखते हैं’’। अतः खोजी पत्रकारिता के लिए जाने वाला अंग्रेजी समाचार पत्र इंडियन एक्सप्रेस की यह रिपोर्ट सबको जरूर पढ़नी चाहिए, जहां उसने ईडी के छापे के संबंध में एक अध्ययन कर यह विवेचना की है कि पिछले 10 वर्षों में जो 25 विपक्षी नेता ईडी का छापा पड़ने के बाद भाजपा में शामिल हो गए थे, उनमें से 20 मामलों में कारवाई शिथिल हो गई है, ठंडे बस्ते में चली गई हैं, अथवा नहीं हो रही है। तीन मामलों में खात्मा रिपोर्ट प्रस्तुत कर प्रकरण बंद कर दिये गये। ‘‘दाई से पेट नहीं छिपता’’, मात्र दो प्रकरणों में ही कार्रवाई आगे बड़ी है। ई.डी. (प्रवर्तन निदेशालय) ने पिछले 9 वर्षो में 21 दलों के 122 राजनैतिक नेताओं पर आपराधिक प्रकरण दर्ज किये गये है, जिनमें से 95 प्रतिशत से अधिक प्रकरण सिर्फ विपक्षी नेताओं पर है। इससे भाजपा का यह दावा तथ्यात्मक रूप से धरातल पर गलत सिद्ध होता है कि जांच एजेंसीज अपना काम ‘‘स्वतंत्र रूप से’’ कर रही हैं। तकनीकी रूप से यह सही हो सकता है, परंतु व्यवहार में यह आईने सामान स्पष्ट है कि ‘‘पिंजरे में बंद तोते की मानिंद’’ केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग किस तरह से हो रहा है।
‘‘लेवल प्लेइिंग फील्ड’’ की नीति का पालन नहीं।
भाजपाईयों पर भ्रष्टाचार की कार्रवाई न होने से विपक्षी नेताओं के विरूद्ध की जा रही भ्रष्टाचार विरोधी कार्रवाई इन भ्रष्ट विपक्षी नेताओं को स्वयमेव ईमानदार नहीं बना देती है। ईडी के छापों के दौरान आपत्तिजनक दस्तावेज, चल व अचल संपत्ति अधिकांश मामलों में मिली है, जिस कारण से अधिकांशत: आरोपियों को जमानत भी नहीं मिली है । कानून का यह सिद्धांत है कि हत्या के एक आरोपी के खिलाफ कार्रवाई न होने पर या न्यायालय द्वारा दोष मुक्त कर दिये जाने पर दूसरी हत्या के आरोपी को उक्त उदाहरण के हवाले मात्र से स्वयमेव मुक्ति नहीं मिल जाती है। बल्कि उसे कानूनी प्रक्रिया के तहत स्वयं को निर्दोष सिद्ध करना ही होता है। हां एक बात जरूर है कि इस चुनावी समर में चुनाव आयोग के समान अवसर (लेवल प्लेइंग फील्ड) के सिद्धांत व नीति का घोर उल्लंघन होता हुआ स्पष्ट रूप से दिखता है। जब सिर्फ विपक्ष के खिलाफ ही चुनाव के दौरान छापे मारे जाते है, गिरफ्तारियों की जाती है, एक भी भाजपा नेता पर नहीं!
भ्रष्टाचार पर कांग्रेस की ‘‘प्रभावशाली’’ कार्रवाई नहीं।
कांग्रेस को तो भाजपा नेतृत्व को इस बात के लिए अवश्य धन्यवाद देना ही चाहिए कि भाजपा ने उसके भ्रष्ट नेताओं को पार्टी में लेकर कांग्रेस को भ्रष्ट नेताओं से मुक्त कर महात्मा गांधी की उस ईमानदार कांग्रेेस पार्टी की और मोड़ दिया है, जो सत्ता वापसी के लिए लालाहित है। कांग्रेस भ्रष्ट कांग्रेसियों से मुक्ति का कार्य न तो स्वयं कर पा रही थी और न ही करने में सक्षम हैं। विपरीत इसके वह उन्हें भ्रष्ट मानने में भी परहेज करती थी, जब तक वे कांग्रेस में थे। कांग्रेस ने कभी भी भ्रष्टाचार के आधार पर आज तक किसी नेता को पार्टी से निष्कासित नहीं किया है। हां आम आदमी पार्टी ने पंजाब में जरूर भ्रष्टाचार के मामले में मंत्री को बर्खास्त किया। ‘‘दांत टूटा सांप ज्यादा फूं फूं करता है ना’’। कांग्रेस ने इन नेताओं को भ्रष्ट तभी माना, जब वे लोग भाजपा में गए।
भाजपा की कार्यशाला में ‘‘व्यक्तित्व’’ का निर्माण-
‘‘पार्टी विद द डिफरेंस’’ का नारा देने वाली भाजपा को यह गुरूर जरूर है कि व्यक्तित्व का निर्माण करने वाली ‘संघ’ की कार्यशाला में शामिल होने के बाद व्यक्ति कितना ही भ्रष्ट-बुरा क्यों न हो, वह एक अच्छा इंसान जरूर बन जाएगा। शायद भाजपा इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए बाहर की बुराइयों को अपनी संगत में लाकर उन्हें सच्चाई में बदलने का प्रयास कर रही है। शायद वह अपने को ‘पारस’’ मान बैठी है। लेकिन वह यहां एक बड़ी भारी भूल कर रही है कि पारस पत्थर का गया जमाना ‘सतयुग’ का था और आज का युग ‘‘कलयुग’’ का है, जहां पीतल ‘‘पारस’’ के स्पर्श से खुद सोना बनने के बजाय पारस पत्थर को ही पीतल बना देगा। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक ईमानदार आदमी को भी सत्ता की कुर्सी पर बैठालने पर सत्ता उसे बेईमान बना देती है। इसका केजरीवाल से अच्छा उदाहरण आपके सामने कोई और हो ही नहीं सकता हैं, जिसका राजनीतिक जन्म ही ‘‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’’ के बैनर तले जन लोकपाल कानून बनाने व भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से हुआ है। यद्यपि मूल रूप से वे एक सफल नौकरशाही (आई.आर.एस.) थे।
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