निर्भया कांड
याद कीजिए! दिल्ली के एक बस ड्रायवर एवं 5 अन्य अपराधियों के द्वारा दिसम्बर 2012 में एक छात्रा के साथ चलती बस में हैवानियत की समस्त हदें पार कर अमानवीय व वीभत्स तरीके से दुष्कर्म हुआ था। फलस्वरूप पीड़िता की अंततः कुछ समय बाद सम्पूर्ण यथासंभव बेहतरीन इलाज के बावजूद मृत्यु हो गई। पूरे देश में भयंकर आक्रोश व एक सिहरन की लहर सी उठ गई थी। प्रतिक्रिया स्वरूप सोता हुआ एक आम नागरिक ने भी जागृत होकर रोड़ पर आकर विभिन्न तरीेकों से प्रतिक्रियाएं कर एक इंसान होने व इंसानियत तथा मानवीयता का एक परिचय दिया था। परिणाम स्वरूप ही यौन अपराध में दुष्कर्म सहित भारतीय दंड संहिता सहित की कई धाराओं में कई महत्वपूर्ण संशोधन हुए और एक नया अधिनियम ‘पाक्सो’ भी अस्तित्व में आया।
कर्नाटक रेवन्ना सेक्स कांड।
विपरीत इसके कर्नाटक में सामने आयी तथाकथित ‘‘अय्याश राज-नेता’’ की सेक्स वीडियों की तुलना कर लीजिए। (अभी तक वीडियो की सत्यता की पुष्टि रासायनिक जांच (फॉरेसिक परीक्षण) से नहीं हुई है।) हासन सीट के वर्तमान सांसद व जेडीएस लोकसभा उम्मीदवार प्रज्वल रेवन्ना पूर्व प्रधानमंत्री एचडी (हरदन हल्ली डोडेगौड़ा) पूर्व मंत्री विधायक एचडी रेवन्ना के पुत्र हैं देवगौड़ा के पोते, तथा पूर्व मुख्यमंत्री कुमार स्वामी के भतीजे इसके विरूद्ध 266 महिलाओं के साथ यौन शोषण की 2976 सेक्स वीडियों क्लिक की पेन डाईव पूरे देश में सोशल मीडिया के माध्यम से हासन लोकसभा क्षेत्र में फैल गई घर-घर व दुकान सीडी फेकी गई। ‘‘निर्भया कांड’’ और इस ‘‘सेक्स कांड’’ में जो मूलभूत व भारी अंतर है, वह है, निर्भया कांड में 6 अपराधियों ने मात्र एक बेटी के साथ गैंगरेप किया था। परन्तु यहां पर तो एक आरोपी ही 266 महिलाएं, जिनमें बच्चियों से लेकर 60 साल तक की महिलाएं शामिल है, के साथ लम्बे समय से लगातार यौन शोषण करता है। इन पीड़िताओं में घर में काम करने वाली नौकरानियाँ (मैड) से लेकर सरकारी अधिकारी, नौकरीपेशा और पार्टी की महिला कार्यकर्ता भी शामिल हैं। ऐसा यौन अपराधी आश्चर्यजनक रूप से मानसिक रूप स्वस्थ है, उसे मानसिक रूप से विक्षिप्त या पागल करार नहीं दिया गया, सहसा विश्वास नहीं होता है। ऐसा भी व्यक्ति समाज में हो सकता है, यह कल्पनातीत है। यौन अपराधी होने के साथ-साथ रेवन्ना के ‘‘भ्रष्ट आचरण’’ के आधार पर उच्च न्यायालय ने उनकी 2019 की लोकसभा चुनाव को भी अवैध घोषित कर दिया। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के उक्त आदेश को स्थगित कर दिया है।
पारिवारिक राजनीतिक धरोहर ‘‘चकनाचूर’’।
कुछ व्यक्तियों का दिल तो इस कांड से अवश्य दहल गया होगा। परन्तु देश के दिल की धड़कन कश्मीर से कन्याकुमारी तक वैसे नहीं दहली, जैसी निर्भया कांड में दहली थी। इसका क्या यह अर्थ यह नहीं निकाला जाए कि निर्भया कांड के अपराधीगण समाज के छोटे से वर्ग ड्राइवर, क्लीनर, फल विक्रेता, जिम ट्रेनर थे, इसलिए पूरे देश का गुस्सा अदने से निम्न वर्ग से आने वाले इन अपराधियों पर आ पड़ा। इसके विपरीत यहां पर अपराधी सफेदपोश एक शक्तिशाली राज नेता है, जिसे जनता ने कई बार चुना है, जिसके पिता को सांसद चुना व उसके दादा को प्रधानमंत्री पद पर बैठाया, परिवार के अन्य सदस्य (लगभग 8 सदस्य) भी सांसद, विधायक, मंत्री चुने गये। इसलिए ऐसी राजनीतिक धरोहर वाले परिवार के घृणास्पद आरोपी सदस्य के विरूद्ध आम जनता की प्रतिक्रिया क्या खौफ-ड़र-दहशत के कारण निर्भया कांड के समान वैसी तीव्र व व्यापक नहीं हुई? अथवा आम व्यक्ति की जिंदगी में राजनीति इतनी घुल मिल गई है कि उससे जुड़ी हैवानियत की सीमा तक की बुराई दहशतगर्दी भी जनता को या तो दिखती नहीं है अथवा व उसे अनदेखा कर देती है? जैसा कि बृजभूषण शरण सिंह के मामले में भी देखने को मिला है। क्या जनता ऐसी घटनाओं को भी सिर्फ ‘‘राजनीतिक चश्मे’’ से ही देखना चाहती है? बडा प्रश्न यह है? तथाकथित भद्द् समाज के चेहरे पर यह एक बड़ा तमाचा है।
मीडिया की भूमिका का ‘‘भूमिगत’’ हो जाना।
एक भी तथाकथित राष्ट्रीय (मेन स्ट्रीम) टीवी चैनल ने इस कांड पर बहस तक नहीं की प्रश्नों की बौछार तो छोडिये; एक प्रश्न भी नहीं पूछा। याद कीजिए! निर्भया कांड से लेकर अनेको यौन अपराध देश के विभिन्न अंचलों में जब-जब घटित हुए, जिनमें राजनीतिक जमात के लोग शामिल नहीं होते है, तो टीवी चैनल बहस करते-कराते थक जाते हैं और अपनी ‘‘टीआरपी’’ को बढ़ाते हैं। शायद मीडिया को इस घटना को लेकर यह विश्वास हो गया होगा कि इस घटना पर चर्चा से टीआरपी तो बढ़ेगी नहीं? तो फिर बहस का फायदा क्या? क्या जनता से लेकर मीडिया किंग कर्तव्यविमुख हो गया? ऐसी शर्मनाक घटना पर अपना दायित्व पूरा करने में मीडिया पूरी तरह से असफल हो गया है। यह एक बडी चिंता का विषय है, और इस पर पूरी गहराई से विचार किया जाना आवश्यक है। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है।
विक्षिप्त मानसिकता?
यह सेक्स कांड देश का ही नहीं, बल्कि विश्व का शायद सबसे बड़ा घृणित सेक्स कांड होकर गिनीज बूकस् ऑफ रिकार्ड में दर्ज होने लायक होगा। उक्त कांड के आरोपी की उम्र मात्र 33 साल है, जिसने अपने से छोटी व बड़ी महिलाओं के साथ बलपूर्वक, प्रलोभन या ड़र, भय व दहशत के वातावरण में शारीरिक संबंध बनाये। आश्चर्य व चिंता की बात यह नहीं है कि यह घटना लगभग 4-5 साल पुरानी बताई जा रही है, जैसा कि आरोपी के विधायक पिता ने खुद सार्वजनिक रूप से कहा। बल्कि इतनी बड़ी संख्याओं में महिलाओं जिनमें महिला पुलिस अधिकारी एवं प्रशासनिक अफसर भी शामिल है के साथ लम्बे समय से चले आ रहे ‘‘दुराचार’’ के बावजूद किसी भी महिला द्वारा लम्बा समय गुजारने के बावजूद कोई रिपोर्ट न लिखाना, घटना की वीभत्सा व आस-पास विद्यमान भयंकर परिस्थितियों को ही इंगित करती है। याद कीजिये! यह वही कर्नाटक प्रदेश है, जहां की विधानसभा में फरवरी 2012 में 3 भाजपा विधायक पॉर्न विडियो देखते हुए पकड़े गये थे, जिन्हें न केवल 2012 के विधानसभा चुनाव में टिकिट दिया गया, बल्कि इन तीनों में से एक लक्ष्मण सावदी को तो चुनाव हारने के बावजूद उप मुख्यमंत्री भी बना दिया गया। तीन साल बाद त्रिपुरा विधानसभा में पुन एक भाजपा विधायक जादव लाल नाथ भी अश्लील विडियो देखते हुए पकड़े गये थे। 2021 में गुजरात विधानसभा में भी भाजपा के दो विधायक पॉर्न विडियो के शिकार हुए ह। इस कुंठित मानसिकता को सिर्फ किसी एक राजनीतिक दल तक सीमित करना बेहद अनुचित होगा। कांग्रेस के कर्नाटक विधान परिषद के प्रकाश राठौर भी रंगे हाथ पकड़े जा चुके हैं।
कर्नाटक सरकार की पूर्ण अर्कमणयता।
इस कांड का विलक्षण पहलू यह भी है कि इस सेक्स कांड के आरोपी स्वयं द्वारा जबरदस्ती स्थापित यौन संबंधों का खुद ही वीडियो बनाकर अपनी पेन डाईव में स्टोर करता है। याने यौन अपराध घटित करने के साथ-साथ दूसरे अन्य अपराध ब्लेकमेल करने में भी उसे ड़र नहीं लगा। चुनाव में वोट डालने के पश्चात वह आरोपी भारत छोड़कर जर्मनी चला जाता है। एसआईटी गठित होने के बाद आरोपी के ड्राइवर कार्तिक के भी मलेशिया पहुंचने के समाचार है। राज्य सरकार हाथ पर हाथ धरी बैठी रहती है। राज्य सरकार का इस संबंध में कार्रवाई न करने के संबंध में बचाव पूरी तरह से ‘‘झूठ का पुलिंदा’’ है व अकर्मणयता के साथ सुविधा की राजनीति का जीता जागता उदाहरण है। लुक आउट नोटिस जो राज्य सरकार की जांच एजेंसियां जारी करती है, के जारी किये बिना आरोपी को किसी भी एयरपोर्ट पर रोकना संभव नहीं था। राज्य सरकार द्वारा आरोपी के भारत छोड़ने तक लुक आउट नोटिस जारी न करने के बावजूद केन्द्र सरकार आरोपी को रोकने में असफल रहने का आरोप लगातार निहायत राजनीति है। सरकार का यह कहना कि आरोपी बेंगलुरु न्यायालय से 1 जून 2023 को उक्त तथाकथित वीडियो को वायरल न करने के गैग (चुप रहने का) ब्लैंकेट आदेश ले लिये थे, इसलिए सरकार चुनावी प्रक्रिया चालू रहने के कारण मामले में हस्तक्षेप नहीं कर पाई। जैसे ही 28 अप्रैल को एक महिला आरोपी की घरेलू सहायिका (मैड) ने हासन में 26 अप्रैल को चुनाव समाप्त होने के बाद विधायक एच.डी. व सांसद प्रज्वल रेवन्ना के विरूद्ध रिपोर्ट लिखाई जबकि वीडियो चुनाव के एक दिन पूर्व से ही वायरल हो रहा था। सरकार ने 27 अप्रैल को कार्रवाई के लिए एक एसआईटी गठित कर दी। आश्चर्यजनक रूप से पहले धारा 376 का अपराध दर्ज नहीं किया गया जो, बाद में जोड़ी गई। प्रारंभिक रूप से मात्र 354ए, 354डी 506 एवं 509 की धाराओं के अंतर्गत प्रकरण दर्ज किया गया।
न्यायालय का स्टे ब्लैंकेट आदेश! कितना न्यायोचित?
न्यायालय का इस तरह का ब्लैंकेट स्टे आदेश भी अपने आप में ही संदेह के घेरे में तो ही है, परन्तु वह ब्लैंकेट आदेश 86 मीडिया आउटलेट्स एवं तीन व्यक्तियों जिसमें रेवन्ना का ड्राइवर भी शामिल है के विरुद्ध था। सरकार जिसमें पार्टी नहीं थी। न ही राज्य शासन के विरूद्ध कोई स्टे आदेश कार्रवाई न करने का पारित किया गया था। वैसे भी कोई भी अपराध घटित होने पर देश का कोई भी न्यायालय ऐसा ब्लैंकेट आदेश पारित नहीं कर सकता है, जो सरकार को कोई अपराध घटित होने पर आपराधिक कार्रवाई करने से रोक दे। यदि सरकार के विरूद्ध स्टे आर्डर था भी, तब फिर सरकार ने उक्त आदेश के विरूद्ध अपील क्यों नहीं की? प्रश्न यह भी उत्पन्न होता है। विपक्ष पर आरोप लगाने वाली कांग्रेस यह क्यों भूल जाती है कि इसी जेडीएस के साथ वह वर्ष 2019 में चौदह महीने सरकार में रह चुकी है, जब ये अपराध लगातार घटित हो रहे थे। स्वयं पीड़िता ने प्रज्वल रेवन्ना पर 2019 से 2022 तक यौन शोषण का आरोप लगाया है। कर्नाटक महिला आयोग एवं राष्ट्रीय महिला आयोग कहां खड़ा है, पता नहीं? कर्नाटक महिला आयोग भी हरकत में तब आयी जब उसे पेन ड्राइव मिला, तब उसने राज्य सरकार को एसआईटी गठित करने के लिए पत्र लिखा। क्या आपको नहीं लगता है कि ऐसे महिला आयोगों को तुरंत समाप्त कर खर्चा बचाना चाहिए? अथवा आयोग में राजनैतिक नियुक्तियां प्रतिबंधित कर देनी चाहिए?
प्रधानमंत्री द्वारा खेद व्यक्त किया जाना चाहिए था।
इस कांड का दूसरा महत्वपूर्ण व चिंताजनक पहलू यह है कि एक सफेदपोश आरोपी के लिए प्रधानमंत्री ने जनता से सार्वजनिक रूप से मंच से वोट देने की अपील करते हुए यह कहा था कि रेवन्ना को दिया गया मत अंततः मोदी के हाथ को मजबूत करेगा। बड़ा प्रश्न यह पैदा होता है कि क्या प्रधानमंत्री को व्यक्तिगत रूप से इस घटना की जानकारी थी कि नहीं? व्यक्तिगत जानकारी के संबंध में प्रधानमंत्री का कोई कथन अभी तक सामने नहीं आया है। अतः यह माना ही जाना चाहिए कि प्रधानमंत्री को व्यक्तिगत रूप से तथाकथित उक्त कांड की जानकारी नहीं थी। घटना की जानकारी सार्वजनिक होने पर निश्चित रूप से प्रधानमंत्री को सामने आकर सार्वजनिक रूप से यह बयान जनता के सामने देना चाहिए कि मैंने प्रज्वल रेवन्ना के समर्थन में सार्वजनिक सभा में मत देने की जो अपील की थी, तब मुझे उसके तथाकथित यौन अपराध की जानकारी नहीं थी, जो मुझे अभी मिली है, अतः मैं घटना की घोर भर्त्सना करता हूं। उक्त आरोपी को भारत सरकार जर्मनी से वापिस लाने के लिए त्वरित कार्रवाई करेगी, ताकि उसके विरूद्ध कठोर से कठोर कार्रवाई कर सजा दिलायेगें। अनजाने में हुए इस गलती के लिए हासन क्षेत्र की जनता से माफी मांगता हूं, कि ऐसे व्यक्ति के लिए वोट मांगा। परंतु ऐसा कथन प्रधानमंत्री की ओर से अभी तक नहीं आया है।
कर्नाटक प्रदेश भाजपा को जानकारी दी गई थी।
इस घटना की जानकारी कर्नाटक के समस्त राजनीतिक दलों भाजपा से लेकर कांग्रेस तक को होने के बावजूद किसी के भी द्वारा कार्रवाई के लिए आगे न आना, वास्तव में यह 21वीं सदी की आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के साथ इंसान की किस मानसिकता को प्रदर्शित करता है? यह सभ्य समाज की कल्पना से बहुत दूर है। तथापि रेवन्ना के विरुद्ध लोकसभा चुनाव लड़ने वाले कर्नाटक के भाजपा के नेता एडवोकेट देवराज गौडा ने लिखित पत्र द्वारा लगभग 6 महीने पूर्व 8 दिसंबर 23 को भाजपा के पदाधिकारियों, प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय महासचिव संगठन, बीएल संतोष को सेक्स कांड की पेन ड्राइव के बाबत सूचित किया था। जनवरी 2024 में एक पत्रकार वार्ता में देवराज ने इन वीडियो का उल्लेख किया था। बावजूद इसके प्रधानमंत्री को उनके चुनावी दौरे के समय भी यह सूचना नहीं दी गई तथा प्रधानमंत्री की सुरक्षा एजेंसी व जांच एजेंसी भी इस संबंध में जानकारी प्राप्त कर प्रधानमंत्री को देने में असफल रही। इस देश की राजनीति में सिर्फ और सिर्फ राज-सत्ता के अलावा कुछ शेष रह गया है क्या? आम नागरिक इस बाबत क्यों नहीं सोचते हैं कि जिस राजनीति के सहारे महात्मा गंाधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ. भीमराव अम्बेड़कर, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, पंडित श्यामप्रसाद मुखर्जी, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे धुरंधर नेता इस देश में हुए, क्या वे अब मात्र अवशेष रह जायेगे? आम जनता की स्थिति क्या होगी, इसकी कल्पना आज के सामान्य नागरिक के दिमाग की सोच के बाहर की बात है।
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