शनिवार, 29 जून 2024

विकसित भारत का सफलतम ‘‘बैरोमीटर’’! पेपर लीक?

 ‘‘पेपर’’ के ‘‘कायदे ही कायदे’’! ‘‘वायदे ही वायदे’’।  ‘‘लीक’’ के ‘‘फायदे ही फायदे’’?

लोकतांत्रिक भारत।’

निसंदेह भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। परतंत्रता से मुक्त होकर ‘‘अविकसित’’ राष्ट्र से विकास की ओर कदम बढ़ाते हुए ‘‘विकासशील’’ देश होकर वर्ष 2047 तक ‘‘विकसित’’ राष्ट्र बनाने का लक्ष्य प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने रखा हुआ है। 26 जनवरी 1950 को हमारी स्वनिर्मित भारतीय संविधान द्वारा स्थापित लोकतंत्र की सफलता का ही यह एक अद्भुत क्षण है, जब 18 वें लोकसभा के पहले सत्र का ‘‘आगाज’’ 24 जून को हुआ। ‘‘अंजाम’’ क्या होगा, यह भविष्य के गर्भ में है। परंतु 24 जून का आगाज उस 25 जून की काली तारीख के पूर्व हुआ है, जब इसी लोकतंत्र की आपातकाल लगाकर हत्या करने का प्रयास किया गया था। परंतु तब भी लोकतंत्र पूरी तरह मरा नहीं था। हां मरणासन्न स्थिति में जरूर चला गया था। चूंकि 26 जनवरी 1950 को लागू संविधान के द्वारा इस लोकतंत्र की जड़े इतनी मजबूत थी कि 25 जून 1975 को मरणासन स्थिति में पहुंचने के बाद वही लोकतंत्र स्वस्थ होकर मजबूत होकर पुनः खड़ा हो गया और आज आरोपों व प्रत्यारोपों के बीच सफलतापूर्वक चुनाव संपन्न करवा कर चमक-दमक के साथ चहक-दहक रहा है। स्वतंत्र भारत और लोकतंत्र का ‘‘गर्भनाल का संबंध’’ है, भला ‘‘उंगलियों से नाखून अलग हुए हैं कभी’’। इसीलिए राष्ट्रपति के अभिभाषण में आज यह कहा गया कि संविधान हमेशा ‘खरा’ उतरा है।

मजबूत होता लोकतंत्र?’

देश के लोकतंत्र को मजबूत करने में कई ‘‘खट्टे-मीठे’’ अनुभव एक नागरिक से लेकर चुने हुए जन-प्रतिनिधियों और संविधान द्वारा निर्मित समस्त ‘‘तंत्रों’’ को निश्चित रूप से हुए होंगें।  इसलिए कभी ‘‘नकारात्मकता’’ में भी ‘‘सकारात्मकता’’ का भाव देखने का प्रयास अवश्य करना चाहिये? क्योंकि हर नकारात्मक कदम में भी कभी कुछ सकारात्मक भाव होने से इंकार नहीं किया जा सकता है। जैसा कि बाबा राम रहीम के मामले में उन्हें 19 से अधिक मिले गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड एवं लिम्का रिकॉर्ड के सकारात्मक पहलू पर मैंने एक लेख लिखा था। देश का लोकतंत्र सिर्फ सकारात्मक कार्य, भाव से ही मजबूत नहीं होता है, बल्कि ऐसे नकारात्मक भाव जहां पर पक्ष विपक्ष दोनों की सहमति से लेकर कार्यशैली एक सी ही होती है, उससे भी लोकतंत्र मजबूत होता है? इसका सबसे बड़ा उदाहरण नीट पेपर लीक जो ‘‘कांड’’ नहीं एक ‘‘कदम’’ है, की चर्चा सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विश्व व्यापी हो रही है, क्योंकि मामला लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए उठाए गए कदमों से है? अरे ‘‘इधर का सूरज उधर से उग जाये’’, तो इसमें हर्ज ही क्या है? यही तो लोकतंत्र की खूबसूरती है।

सर्वानुमति?

वैसे भारतीय लोकतंत्र में सहमति के मुद्दे कम ही होते हैं, अवसर भी कम ही आते हैं। सर्वानुमति का एक महत्वपूर्ण मुद्दा लोकसभा स्पीकर का निर्विरोध चुनाव का होना रहा है। परन्तु दुर्भाग्यवश वह बड़ी व जरूरी सर्वानुमति भी टूट गई और वर्ष 1976 के बाद 47 साल बाद 18वीं लोकसभा के स्पीकर का चुनाव मत विभाजन द्वारा हुआ है। यद्यपि स्वतंत्र भारत के संसदीय इतिहास में यह चौथा मौका है, जब स्पीकर का चुनाव हुआ है। तथापि 1952 के प्रथम लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव में दिलचस्प बात यह थी कि विपक्षी उम्मीदवार ने सत्तापक्ष के उम्मीदवार जी.वी. मावलंकर को अपना मत दिया था व वैसे ही (पारस्परिक) उम्मीद उनसे की गई थी। दूसरी बार वर्ष 1967 में संजीव नीलम रेड्डी का चुनाव हुआ। तीसरी बार वर्ष 1976 में आपातकाल में हुए चुनाव में विपक्षी उम्मीदवार जगन्नाथ राव जोशी जेल में थे। पेपर लीक का मामला एक ऐसा कार्य मुद्दा है, जिस पर पक्ष हो या विपक्ष, सत्ता हो या विरोधी, सब की गजब की ‘‘सर्वानुमति’’ इस मामले को लेकर रही है। क्योंकि ‘‘इस पेपर लीक की देवी ने बहुत से भक्त तारे हैं’’। वस्तुतः इस मामले में समस्त दल ‘‘एक ही थैली के चट्टे-बट्टे है’’। इसीलिए लोकतंत्र मजबूती से आज आपके सामने खड़ा है? बात जब ‘‘नीट’’ व ‘‘नेट’’ परीक्षा की आती है, तो आप इसकी आलोचना क्यों करते हैं? ‘‘नीट’’ (परीक्षा) का अर्थ ही होता है ‘‘स्वच्छ’’ व ‘‘नेट’’ (राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा) का अर्थ ‘‘शुद्ध’’। तो फिर उसकी बुराई करना या ‘‘उसे गंदा, अशुद्ध कार्य ठहरना’’ किसी भी रूप से उचित नहीं कहलाएगा? इसलिए ‘‘नीट को क्लीन चिट’’ देकर राजनीति को ‘‘क्लीन’’ कर दीजिए?

‘‘फायदा ही फायदा’’?

लोकतंत्र में पक्ष-विपक्ष दो पक्षों के समान ही पेपर लीक के मामलों में भी विद्यार्थियों के दो पक्ष है, जहां एक मत के अनुसार पेपर लीक उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। यदि आप पेपर लीक के फायदे को जान लेंगे, तब फिर आप यह भी समझ जाएंगे कि इससे लोकतंत्र कैसे मजबूत हो रहा है? आईये इन फायदों? को समझने का प्रयास करते हैं।

प्रथम, पेपर लीक सरकार के ‘‘सबका साथ सबका विकास सिद्धांत को मजबूत करता है’’। वह ऐसे कि कमजोर कम बुद्धि वाले छात्र और बुद्धिमान छात्र दोनों का बराबर विकास इसके माध्यम से हो जाता है? दूसरा फायदा, बच्चों को सिलेबस अच्छे से रट जाता है, क्योंकि लीक पेपर को उन्हें बार-बार रटना पड़ता है। तीसरा फायदा देश के विद्यार्थियों को केंद्रीय शिक्षा मंत्री की जानकारी हो जाती है, क्योंकि देश के विद्यार्थियों से सीधा संवाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ‘‘परीक्षा पे चर्चा’’ के माध्यम से तो जरूर करते हैं। परन्तु शिक्षा मंत्री सामने नहीं आते हैं। अगला फायदा सरकार के खर्चों की बचत का होना है। क्योंकि पेपर लीक होने के बाद पूरी प्रक्रिया को फिर से पूरा करने में काफी समय गुजर जाता है और उतने समय तक सरकार वैधानिक रूप से बेरोजगारों को नौकरी देने से वंचित करने में सक्षम हो जाती है।

पेपर लीक से अगला फायदा ‘‘स्वरोजगार’’ को बढ़ावा मिलना भी है। जैसे ‘‘पकोड़ा बेचना’’ जिसका उदाहरण वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री ने एक टीवी इंटरव्यू में दिया था। छोटे-छोटे कुटीर उद्योगों को भी फायदा मिलता है। पेपर लीक होने के कारण तुरंत नौकरी नहीं मिल पाने से जीवन यापन के लिए वैकल्पिक दूसरे रास्ते व्यापार उद्योग को चुनने की मजबूरी हो जाती है। मतलब यह कि ‘‘नौकरी छोकरी की छोड़ आस, धर खुरपा गढ़ घास’’। इस प्रकार देश का बेरोजगार युवा मजबूरी में ही सही, देश के व्यावसायिक प्रगति (ग्रोथ) में अपना योगदान देता है। ‘‘अंधे पीसे कुत्ते खाय’’ रूपी पेपर लीक ‘‘फिनॉमिनन’’ का एक योगदान प्रिंटिंग प्रेस उद्योग को भी होता है, क्योंकि पेपर बार-बार छापना पड़ता है। साथ ही पेपर के आवागमन के आउटसोर्स साधनों को भी आर्थिक मदद मिल जाती है। होटल उद्योग, समस्त प्रकार के परिवहन उद्योग की तो ‘‘चांदी’’ हो जाती है, क्योंकि पेपर लीक होने पर बार-बार छात्रों को ही नहीं उनके अभिभावकों को भी दूरस्थ पेपर सेंटरों में पेपर देने जाना होता है। यानी कि पेपर लीक अब ‘‘अकल आसरे कमाई की बजाय नकल आसरे कमाई’’ का माध्यम बन गया है। मानसिक श्रम और तनाव के कारण चिकित्सा उद्योग को भी फायदा पेपर लीक से होता है।

इस पेपर लीक से सबसे बड़ा फायदा 4 फरवरी 2024 में संसद द्वारा पारित ‘‘एंटी पेपर लीक’’ कानून जो राष्ट्रपति के द्वारा स्वीकृति प्रदान करने के बावजूद अभी तक लागू नहीं किया गया था, को 22 जून को अधिसूचना जारी कर लागू कर दिया गया। इसका एक और गैरकानूनी फायदा लगभग 900 करोड़ (अभी तक) का काला धन एक तरफ खप गया तो दूसरी तरफ 900 करोड़ की काली (ब्लैक की) कमाई बेरोजगार छात्रों, नागरिकों के हो गई? इसका एक फायदा भविष्य में केंद्र और राज्य सरकारों को भी हो सकता है, यदि वे बेरोजगारी भत्ते देने वाले अपने नियमों में यह परिवर्तन कर दें कि जिन बेरोजगारों को पेपर लीकेज की काली कमाई हुई है, उन्हें भत्ता नहीं मिलेगा?

पेपर लीकः राजनीति चमकाना!

पेपर लीक का एक फायदा ‘‘नीति के कफन’’ पर ‘‘राजनीति चमकाने’’ का भी है। पेपर लीक होने से समस्त राजनैतिक दलों को चाहे सत्तापक्ष के हो या विपक्ष के ‘‘राजनीति चमकाने’’ का अवसर मिल ही जाता है। सत्ता पक्ष, विपक्ष पर यह प्रत्यारोप लगा कर राजनीति चमकाता है कि विपक्ष की सरकारों के कार्यकाल में इससे भी ज्यादा पेपर लीक व छात्र प्रभावित हुए हैं। बावजूद इसके जब विपक्ष यह सिद्ध कर देता है कि सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकालों में ही पेपर लीक के ज्यादा प्रकरण हुए है, तब सत्ता पक्ष दम ठोकर यह कह कर विपक्ष को चुप करा देता है कि देश की प्रगति में ‘‘हर मोर्चे पर’’ आप से आगे हम दिखते रहेंगे, निकलते रहेंगे? आखिरय ‘‘सत्ता और विपक्ष की चकाचौंध से दृष्टि बाधित युवक किसकी ओर उंगली उठाये’’।

पेपर लीक के बाद सरकार की अक्रमण्यता अथवा कार्रवाई से लगभग सम्पूर्ण छात्र वर्ग खुश हो जाता है। पेपर लीक के बाद जब सरकार छोटी-मोटी त्रुटि कहकर पेपर निरस्त नहीं करती है, तब ‘लीकेज’ से लाभार्थी छात्रगण खुश हो जाते हैं। विपरीत इसके जब सरकार पेपर रद्द करके फिर से परीक्षा की घोषणा करती है, तब अधिकांश छात्रों का समूह ‘‘कभी खुशी कभी गम’’ की स्थिति में रहता है। खुशी इस बात की कि कमजोर छात्रों द्वारा पेपर लीक करके श्रेणी न पाये छात्रों का श्रेणी प्राप्त करने वाले मेधावी छात्रों का हक वापिस मिलने का अवसर मिलता है। तो वहीं दूसरी ओर उन्हें पुनः आवश्यक रूप से दूसरी बार परीक्षा की कड़ी मेहनत करने की स्थिति से गुजरना होता है, जो लादे हुए अतिरिक्त श्रम के कारण उनकी गम की स्थिति हो जाती है।

’एनटीए जिंदाबाद।  

मेरा भारत महान।’

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