कहीं खुशी कहीं गम! कभी खुशी कभी गम!
नरेन्द्र मोदी ऐतिहासिक प्रधानमंत्री होने जा रहे हैं।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में वर्ष 1951-52 में जब सबसे लम्बे चुनावी प्रक्रिया 4 महीने चली थी, के बाद अभी तक के दूसरे सबसे लंबे समय तक चले लोकसभा चुनाव के अंतिम परिणाम आ गए हैं। परिणाम में स्पष्ट रूप से अकेले भाजपा को तो नहीं, परन्तु भाजपा के नेतृत्व में बनी एनडीए को स्पष्ट पूर्ण बहुमत प्राप्त हो गया है। वहीं कांग्रेस के नेतृत्व में बनी इंडिया प्रमुख व सशक्त विपक्षी गठबंधन के रूप में उभरा है। यदि हम पिछले 25 वर्षों के चुनावी परिणाम का अवलोकन करें तो, यह चुनावी परिणाम इस मायने में सबसे अलग होकर विलक्षण है कि जहां दोनों पक्ष सत्ता और विपक्ष, एनडीए और इंडिया एक ही परिणाम में एक साथ अपनी-अपनी जीत के लिए जनता को बधाई दे रहे हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद नरेन्द्र मोदी ऐसे दूसरे व्यक्ति हैं, जो लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने जा रहे है। यद्यपि चुने हुए वे लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने वाले पहले व्यक्ति होगें। यदि वे पिछले वर्ष 2019 के चुनाव में प्राप्त 303 सीटों से ज्यादा सीटें प्राप्त कर लेते तो वे जवाहरलाल नेहरू से भी ज्यादा सफल प्रधानमंत्री कहलाते, क्योंकि नेहरू की जीत प्रत्येक अगले आम चुनाव में क्रमवार कम होती गई थी।
एग्जिट पोल असफल!
इस चुनाव की सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी रही कि समस्त 12 सर्वे एजेंसियों द्वारा दिए गए एग्जिट परिणाम बिल्कुल ही गलत सिद्ध हुए। तथापि दैनिक भास्कर का जो एग्जिट पोल नहीं था, बल्कि सर्व मात्र ऐसा था, जिसने 281-350 की लम्बी रेंज के आकड़े के प्रारंभ आकड़े 281 से वर्तमान आयी संख्या 292 मिलते हैं। यद्यपि जी न्यूज के एआई एग्जिट पोल ने एनडीए को 305-315 सीटे दी है, जो 12 एग्जिट पोल की तुलना में परिणाम के ज्यादा निकट है।
जीत-हार नहीं! जीत तो जीत या हार तो हार?
पिछले चुनाव (303 सीटों)की तुलना में बीजेपी की 63 सीटें अर्थात लगभग 20% कम होने के बावजूद यदि वह खुशियां मना रही है, तो इसलिए कि उनके नेता नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की तीसरी बार सरकार बनने जा रही है। लेकिन साथ ही बीजेपी के लिए यह चिंता व मनन का भी विषय है कि 370 का नारा तो दूर पिछले चुनाव में प्राप्त 352 सीटें भी वह बचा नहीं पाई, जिसका आत्म-विश्लेषण, आत्मालोचन पार्टी निश्चित रूप से करेगी। इस प्रकार भाजपा के लिए यह चुनाव परिणाम जीत और हार दोनों लिए हुए है और इसीलिए कभी खुशी-कभी गम (अमिताभ बच्चन की फिल्म) और कहीं खुशी- कहीं गम की स्थिति है। इसी प्रकार इंडिया गठबंधन ने परिणाम के दौरान ही तुरंत पत्रकार वार्ता कर कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने जनता को बधाई दी। यद्यपि दावे के अनुसार सरकार बनाने लायक बहुमत न मिलने पर उन्होंने यह नहीं कहा कि यह हमारी हार है और हम जनता के निर्णय को शिरोर्धाय करते है, जैसा कि हर हार के बाद कहा जाता रहा है। कारण स्पष्ट है कि कांग्रेस की 2019 के चुनाव की 52 सीटें बढ़कर लगभग 100 के पास 99 तक पहुंच गई हैं और ‘‘इंडिया’’ लोकसभा में पिछले पिछले 25 सालों में आज सबसे मजबूत विपक्षी गठबंधन बना। परंतु इंडिया को उनके दावे 295 सीटों के विपरीत मात्र 233 सीटे ही मिल पाई और वे बहुमत से काफी दूर रह गई।
परिपक्व संतुलित निर्णय।
भारतीय लोकतंत्र की दृष्टि से देखें तो यह चुनाव परिणाम जनता के एक परिपक्व निर्णय को दर्शाता है। वह ऐसे कि एक तरफ पूर्ण बहुमत (292) की स्थाई सरकार दी गई तो, दूसरी तरफ मजबूत विपक्ष (234) को चुना गया। 400 के नारे से बने तानाशाही के नरेशन व परसेप्सन की प्रवृत्ति की तथाकथित आशंका को भी जनता ने दूर किया तो दूसरी ओर संख्या में कमी के कारण लंच-पुंज विपक्ष के रहते सरकार पर कोई मजबूत नियंत्रण न रख पाने की असमर्थता को पर्याप्त संख्या देकर सत्ता पर एक प्रभावी अंकुश रखने के लिए समर्थ विपक्ष भी बनाया। जनता को प्रायः अधिकाशतः अनपढ़, बेवकूफ, अंगूठा छाप तक कहा जाता रहा है, उसी जनता ने इस चुनावी परिणाम से यह सिद्ध कर दिया कि परिस्थितियों के अनुसार देश हित में संतुलित निर्णय लेने की उसमें पर्याप्त क्षमता है, जो वह लेती है। इसलिए वर्तमान परिणाम को स्वीकार कर किसी भी पक्ष को हार या जीत से परे रहना होगा। देश हित में सत्ता की गाड़ी के दोनों पहिया बनकर रचनात्मक विपक्ष बनकर देश को आगे चलाने का महान दायित्व जनता ने राजनैतिक दलों को दिया है। अब यह देखना होगा कि इन बुनियादी दायित्वों को दोनों पक्ष संकीर्ण राजनीतिक हितों से परे रहकर देशहित में किस प्रकार कार्य करते हैं? यह अभी भविष्य के गर्भ में है। निश्चित रूप से जनता की निगाहें उन पर पैनी नजर रखेंगी। इस बात को दोनों पक्षों ने भूलना नहीं चाहिए। अन्यथा इसके दुष्परिणाम दोनों पक्षों को भुगतने पड़ सकते हैं।
शेयर बाजार पर दोहरा विपरीत प्रभाव।
इस चुनाव परिणाम के सबसे दुखद पहलू को भी जानिए; जिस पर अंकुश लगाये जाने की नितांत आवश्यकता भी है। एग्जिट पोल ने 1 तारीख को चुनावी परिणाम के जो अनुमान दिये थे, वे किसी भी तरह से जमीनी स्तर पर व्यवहारिक नहीं लग रहे थे। इस कारण शेयर बाजार में 2621 अंको का उछाल आया। परन्तु चुनाव परिणाम के दिन जैसे-जैसे परिणाम आते गये शेयर सूचकांक में तेजी से गिरावट होकर 6200 से ज्यादा अंको से संेसेक्स लुुढ़क गया। एक अनुमान के अनुसार एक झटके में लगभग 36 लाख करोड़ रूपये का नुकसान निवेशकों को हुआ। भाजपा को बहुमत से 32 सीटे कम आने का मतलब प्रत्येक सीट ने 1 लाख करोड़ का नुकसान कराया। पिछले सवा दो साल में शेयर बाजार में आई यह सबसे बड़ी गिरावट है। क्या इसकी जिम्मेदारी कोई लेगा?
तुरूप के इक्के! नीतीश कुमार-चंद्रबाबू नायडू।
इस चुनाव ने राजनीति में साइड लाइन किये जाने वाले नीतीश कुमार तथा साइडलाइन हो चुके चंद्रबाबू नायडू दोनों ही ‘‘तुरूप का इक्का’’ सिद्ध होने जा रहे हैं। दोनों ही तेज चालाक व सौदेबाजी में पारंगत मुख्यमंत्री नेता है। उनकी सौदेबाजी क्या 8 तारीख को नरेन्द्र मोदी को आसानी से प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने देगी यह भी देखने की बात होगी। वैसे इस चुनाव परिणाम के इंडिया अलायंस के आये परिणाम के शिल्पकार राहुल गांधी हीरो होकर भी इस परिणाम ने उन्हें विलेन बना दिया है। वह इसलिए जब उन्होंने इंडिया की बैठक में नीतीश कुमार के संयोजक बनने की राह में ममता का नाम लेकर रोक लगा दी थी। आज यदि नीतीश इंडिया के साथ होते तो शायद स्थिति दूसरी हो सकती थी।
परिणाम की दृष्टि से अंत में एक बात और! ''आत्मनिर्भर भारत'' का नारा देने वाली भाजपा स्वयं ''आत्मनिर्भर'' नहीं रह गई और सत्ता के लिए उसे अब दूसरे सहयोगीयों के उपर ''निर्भर'' रहना पड़ रहा है। यह इस परिणाम की एक दुखद स्थिति रही है।
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