बजट पर त्वरित टिप्पणी।
आलोचना या प्रशंसा?हमारे देश में पक्ष व विपक्ष के बीच खाई, अविश्वास असहमति इतनी गहरी हो गई है कि परस्पर एक दूसरे की आलोचना करते समय प्रायः वे तथ्यों से ‘‘परे’’ हो जाते हैं। कई बार तो आलोचना करने में वे इतने मशगूल हो जाते हैं कि जाने-अनजाने में आलोचना न होकर समालोचना या प्रशंसा हो जाती है। उलट इसके यदि अनजाने में कहीं सहमति बन भी जाए तो जानने पर उसे ‘‘असहमति’’ बनाने पर तुल जाते हैं। ‘‘सेल्फ गोल में माहिर’’ राहुल गांधी की बजट पर प्रतिक्रिया व उसके बाद कांग्रेस की मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया सुनेत का कथन तत्पश्चात भाजपा का इस पर आयी प्रतिक्रया इसी श्रेणी में आती है। ‘‘लंका में सब बावन गज के’’। राहुल गांधी ने अपनी बजट प्रक्रिया में तीन मुख्य बातें कही हैं। पहला यह ‘‘कुर्सी बचाओ बजट है’’, जो बिल्कुल सही है। लेकिन क्या वे यह बतलाने का कष्ट करेंगे कि 77 साल की स्वाधीनता की अवधि में किस वर्ष का, किस सरकार का बजट ‘‘कुर्सी बचाओ’’ बजट के बजाय ‘‘कुर्सी गिराओ’’ या ‘‘कुर्सी खोने’’ वाला बजट रहा है? दूसरा कथन सहयोगियों को खुश करने की कोशिश में सहयोगियों से सरकार ने अन्य राज्यों की कीमत पर ‘‘खोखले वादे’’ किए हैं। यह तथ्यों के बिल्कुल विपरीत हैं। क्योंकि सरकार ने बिहार व आंध्र प्रदेश के लिए विशेष पैकेज क्रमशः रु 26000 करोड़ एवं 15000 करोड़ रु. का प्रावधान कर बहार ला दी, जिससे दोनों राज्य सरकारें ‘‘सकाल पदारथ जग माहीं’’ समान पाकर अति संतुष्ट हैं। अतः यह खोखला वादा कैसे हो सकता है? तीसरा सबसे महत्वपूर्ण कथन इस बजट को कांग्रेस पार्टी के घोषणा पत्र और पिछले बजट का ‘‘कॉपी पेस्ट’’ बताते हुए ‘‘नकल’’ करार दिया है। प्रतिक्रिया के आखिरी के उक्त दो कथन राहुल गांधी की बुद्धि पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाते हैं।
मोदी का कथन सही? राहुल गांधी की मंदबुद्धि?
‘‘कांग्रेस के घोषणा पत्र की ‘‘कॉपी पेस्ट’’ है’’, यह बात समझ से परे है। राहुल गांधी का यह कथन आलोचना है अथवा प्रशंसा? आखिर राहुल गांधी कहना क्या चाहते है? जब वे आलोचना करते हुए कहते है कि एनडीए सरकार का यह बजट कांग्रेस के घोषणापत्र की ‘‘कॉपी पेस्ट’’ है, तो उसका अर्थ यही निकलता है कि कांग्रेस का वह घोषणा पत्र जिसे हाल में हुई संपन्न लोकसभा चुनाव में जोर-शोर से प्रचारित प्रसारित किया गया था, को रूबरू भाजपा ने अपने बजट में अपना लिया है। क्या राहुल गांधी यह कहना चाहते हैं कि कांग्रेस की ‘‘सोने की कटारी को सरकार ने अपने पेट में मार लिया’’ है? तब तो इस बात के लिए राहुल गांधी को भाजपा की प्रशंसा करनी चाहिए। यदि यह वास्तव में आलोचना है तो, उसका मतलब तो यह निकलता है कि भाजपा ने कांग्रेस का घोषणा पत्र जिस पर जनता ने लोकसभा चुनाव में विश्वास कर कांग्रेस को बहुमत नहीं दिया था, को अपना लिया है। शायद इसीलिए राहुल गांधी ने आलोचना की है।
सिक्के के दो पहलू।
हर सिक्के के दो पहलू के समान बजट के भी दो पहलू हैं। कुछ विशेषताएं तो कुछ कमियां! बजट का आर्थिक व राजनीतिक दोनों दृष्टि से आकलन किया जाना आवश्यक है। कहावत है कि ‘‘राज सफल तब जानिये, प्रजा सुखी जब होय’’। इस दृष्टि से यद्यपि 140 करोड़ की जनसंख्या वाले देश के समस्त लोगों की हर ख्वाहिशों की पूर्ति कोई एक बजट नहीं कर सकता है। हाँ उस दिशा में जरूर आगे बढा जा सकता है। यदि हम आर्थिक दृष्टि से बजट की आकलन करे तो, इसका सबसे बडा बैरोमीटर (पैरामीटर) बजट के तुरंत बाद आई शेयर मार्केट की प्रतिक्रिया है, जो बजट पेश करने के पूर्व तक 1340 अंक से भी ज्यादा बढ़ा हुआ होकर बजट समाप्त होने तक 1300 अंक से ज्यादा सूचकांक गिर गया। तथापि कार्य समय समाप्त होते-होते काफी सुधार होकर अंततः मात्र 69 अंक से लुड़का। मतलब आर्थिक दृष्टि से बजट ठीक नहीं रहा। शायद इसका एक कारण दीर्घकालीन पूंजीगत लाभ पर कर की दर 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 12.50 व अल्पकालीन पूंजीगत लाभ (एसटीसीटी) पर 15 से 20 प्रतिशत कर देना भी हो सकता है। पूंजीगत लाभ की गणना के लिए इंडेक्शन से लाभ के प्रावधान को समाप्त कर दिया है जिससे पूंजीगत आय पर कर देयता बढ़ जाएगी। तथापि पंूजीगत लाभ की दर की सीमा 1 लाख से बढ़ाकर 1.25 लाख कर दी गई है। ‘‘एसटीटी’’ की दर बढ़ाकर दुगनी (0.0125 प्रतिशत) कर दी गई है। देश के अन्नदाता किसानों की लंबे चले से चली आ रही एमएसपी पर कानून की मांग जिसमें 700 से अधिक किसान स्वर्गवासी हो गए, पर इस बजट में वित्त मंत्री मौन रही।
बैसाखी देने वाले राजनैतिक साथियों को साधा गया।
राजनीतिक दृष्टि से एनडीए के दोनों महत्वपूर्ण घटक जेडीयू एवं तेलगुदेशम को साधने में सरकार सफल रही है, जिनकी बैसाखी पर सरकार खड़ी है। इस आधार पर कांग्रेस की आलोचना नितांत गलत है। क्योंकि कांग्रेस ने भी तो यूपीए के समय अपने साथियों की इच्छाओं की पूर्ति की थी। ‘‘भला सियासत बिना रियासत कहां’’।
विशेषताएं।
निश्चित रूप से हर बार के बजट के समान इस बार के बजट की भी अपनी कुछ विशेषताएं व अच्छाईयां हैं, ‘‘जिसे कहते हैं लेखे कानाम चोखा’’, जिनका स्वागत किया जाना चाहिये। ‘‘मुद्रा स्फीति’’ की दर 3.1 प्रतिशत तक सीमित रखी गई हैं। 9 क्षेत्रों तथा चार जातियां गरीब, महिलाएं युवा और अन्नदाता पर फोकस की बात वित्त मंत्री ने कही है! रोजगार के मुद्दे पर पिछला चुनाव लड़ा गया था, जिस पर ज्यादा ध्यान केन्द्रीत कर शिक्षा व रोजगार पर 1.48 लाख करोड़ का प्रावधान किया गया। ‘‘मुद्रा ऋण’’ की सीमा 10 लाख से बढाकर 20 लाख करना, नये युवा रोजगार के लिए 7.5 लाख की नई स्कीम तथा 3 प्रतिशत की दर से छात्रों को ऋण देना। ये सब रोजगार को संबोधित करने वाले प्रावधान हैं। 80 करोड़ लोगों को दी जाने वाली मुफ्त प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को अगले पांच वर्ष के लिए और बढ़ा दिया गया है।
आयकर संबंधी छूट।
चूंकि में आयकर वकील हूं, इसलिए इस दृष्टि से यदि मैं इस बजट को एक लाइन में कहूं कि ‘‘यह डिफॉल्टर का सहयोगी व डिपॉजिटर्स का असहयोगी है,’’ जैसे कि ‘‘जंगल में सीधे पेड़ ही काटे जाते हैं, टेढ़े पेड़ खड़े रहते हैं’’ तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। क्योंकि धारा 80 सी (चेप्टर 6) के अंतर्गत निवेश की सीमा रू. 1.5 लाख से नहीं बढाई गई, जो सालो पूर्व से बनी हुई है। क्या सरकार बचत को प्रोत्साहन नहीं देना चाहती है? टीडीएस की त्रुटि के लिए धारा 276 बी के अभियोजन के प्रावधान को समाप्त किया जाकर डिफॉल्टर्स को सहयोग किया गया है। ‘‘वक्र चंद्रमहिं ग्रसे न राहू’’। नौकरी पेशा व्यक्तियों के लिए मानक कटौती की सीमा रु 50000 से बढ़कर 75000 करके कुछ राहत जरूर प्रदान की गई है। दूसरा कराधान की दो टैक्स स्कीम है। पहली स्कीम में कोई बदलाव नहीं किया गया है। जब सरकार खुद यह कहती है कि नई टैक्स रिजीम को दो-तिहायीं से ज्यादा लोगों ने अपनाया है, तब सरकार पुरानी टैक्स स्कीम को समाप्त क्यों नहीं कर देती हैै? विभिन्न आय वर्गो के स्लैब में जो छूट आयकर की दरों में दी गई, वह स्वागत योग्य है। एक और महत्वपूर्ण संशोधन किया गया जो अपवंचित आय के लिए समय सीमा 10 साल की थी, को घटाकर 6 वर्ष कर दिया गया व कर अपवंचित आय की राशि न्यूनतम सीमा भी 50 लाख रू. कर दी है। ‘‘विवाद से विश्वास स्कीम योजना’’ 2024 फिर से लाई जा रही है। स्टार्टअप के लिए एंजेल टैक्स खत्म कर दिया गया है। मिडिल क्लास की दृष्टि में जीएसटी (देश के 652 लोग देते है) एवं व्यक्तिगत आयकर का कुल संग्रह निगमित कर (कॉरपोरेट टैक्स) से सवा गुना होकर 5 गुना हो है। जबकि 2014 के पूर्व आयकर कारपोरेट टैक्स से आधा ही। मतलब कॉरपोरेट को ज्यादा फायदा मिल रहा है। संक्षिप्त में जिस प्रकार भोजन के स्वाद में नमक-मिर्च, खट्टा-मीठा होने से जायका अच्छा होता है, वैसे ही इस बजट का टेस्ट भी है। अतः संपूर्णतः समग्र दृष्टि से इस बजट का स्वागत किया जाना चाहिए।
वैसे बजट पर एक वरिष्ठ नागरिक की शोर-शराबे के दौर में खामोश प्रतिक्रिया... ‘‘न कुछ आशा थी न कुछ मिला’’सब कुछ बयां कर देती है।
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