सोमवार, 12 अगस्त 2024

बिना तथ्य और साक्ष्य के ‘‘मुद्दा’’ बनाकर ‘‘अर्थहीन’’ बहस में महत्वपूर्ण समय ‘‘बेकार’’ करने की क्या हमारी ‘‘प्रवृत्ति व नियति’’ बन गई है?

क्या देश की राजनीति में ‘‘देश हित’’ पर ‘‘सिर्फ’’ अंतरराष्ट्रीय मामलों (बांग्लादेश) को लेकर ही सहमति बन सकती है?


पुनः ‘‘महत्वपूर्ण समय का अपव्यय ही अपव्यय ’’।
गत दिवस ही मैंने देश के ‘अमूल्य’ समय के ‘अपव्यय’ के बाबत कांवड़ यात्रा में नेम प्लेट को लेकर दो भागों में लिखे लेख के माध्यम से लंबी चर्चा की थी। परंतु दुर्भाग्य वश ऐसा लगता है कि देश में बुद्धि का ‘‘अकाल  होकर’’ वह ‘‘काल के गाल’’ में चली गई है। तभी तो बदकिस्मत, विनेश फोगाट की अयोग्यता को लेकर आरोपों (तथाकथित) की पोटली बनाकर देशव्यापी चर्चा में व्यस्त हो कर पुनः समय की बर्बादी की जा रही है। आखिर यह कब और कहां जाकर रुकेगी? वाकई ‘‘खलक का हलक बंद करना’’ बहुत ही मुश्किल है।
‘‘असंभव को संभव’’ कर ‘‘अयोग्य’’ होकर भी फोगाट ने देश का नाम ‘‘ऊंचा’’ कर स्वयं को  ‘‘योग्य’’ सिद्ध किया।
ताजा मामला कई अवॉर्डों से सुशोभित तथा ‘‘खेल पुरस्कार व अर्जुन पुरस्कार’’ से सम्मानित देश की प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय पहलवान विनेश फोगाट का है। पेरिस में चल रहे ओलंपिक में वर्ष 2010 से लगातार 95 अंतरराष्ट्रीय मुकाबले जीत चुकी 4 बार की विश्व कुश्ती चैंपियन तथा पिछले ओलंपिक विजेता 733 पॉइंट्स के साथ जापान की अपराजित ‘‘युई सुसाकी’’ को 50 किलो वजन वर्ग की कुश्ती में प्री क्वार्टर फाइनल में हराकर इतिहास रच कर गोल्ड मेडल चूकने के बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत देश का नाम गौरवान्वित कर ‘‘ऊंचा’’ किया। ‘‘ग्रहण तो चांद को भी लगता है’’ सो यह आईने सामान स्पष्ट है कि देश की हीरोइन ‘‘आईकॉन’’ बन चुकी विनेश फोगाट के 50 किलोग्राम की श्रेणी में 100 ग्राम वजन ज्यादा रह जाने के कारण कुश्ती के ओलंपिक नियमों के तहत उन्हें ‘‘अयोग्य’’ घोषित कर दिया गया, जिस कारण से वे गोल्ड-सिल्वर मेडल के लिए फाइनल में ‘‘मैट’’ पर उतर नहीं सकी। लेकिन ‘‘एक स्वर में कह रहा है सारा देश, तुम हारी नहीं विनेश’’। इस प्रकार ‘‘जो जीता वही सिकंदर’’ मिथक को विनेश ने झुठला दिया। ‘‘जीत’’ ही नहीं ‘‘हार’’ भी ‘‘जीत’’ कहलाती है, इसीलिए तो जीत पर ‘‘हार’’ गले में ड़ाली जाती है।
कुश्ती से ‘‘संन्यास’’ की घोषणा। गहरा ‘‘अवसाद’’ तो कारण नहीं?
‘‘ओलंपिक गोल्ड मेडल’’ जो किसी भी खिलाड़ी के जीवन का सबसे बड़ा स्वप्न होता है, के निकटतम लगभग पहुँच जाने के बावजूद, अयोग्य घोषित होने के चलते लगभग आई सफलता हाथ से ‘‘फिसल’’ जाती है, तब उस खिलाड़ी की मानसिक स्थिति की कल्पना करना किसी अन्य व्यक्ति के लिए लगभग असंभव सी हो जाती है। सच कहा है, ‘‘घाव से बड़ी घाव की टीस होती है’’। तब ऐसे खिलाड़ी के टूटे हुए मनोबल (जमीन पर लेटी हुई उसकी फोटो को देखिये) को ऊंचा उठानें के लिए ‘‘दवाई’’ के रूप में सांत्वना के कुछ अच्छे शब्दों की आवश्यकता की बेहद जरूरत होती है, जैसा कि प्रधानमंत्री ने अयोग्य घोषित होने के तुरंत बाद सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘‘एक्स’’ पर किया ‘‘आप चैंपियन में चैंपियन है। आप भारत का गौरव हैं। मैं जानता हूं कि आप दृढ़ता का प्रतीक हैं। चुनौतियों का डटकर मुकाबला करना हमेशा से आपका स्वभाव रहा है। मजबूत होकर वापसी आइये’’। इससे अच्छा उत्साह वर्धन करने वाला कोई शब्द-लाइन हो ही नहीं सकती। यद्यपि विनेश की सेमी फाइनल तक की ऐतिहासिक जीत ऐतिहासिक इसलिए है कि विनेश प्रथम भारतीय महिला कुश्ती खिलाड़ी बनी जो आंेलपिक में फाईनल में पहुंची, जिस पर प्रधानमंत्री का ट्वीट न आना या फोन पर बातचीत न करना जैसे अन्य खिलाड़ियों के साथ किया, पर प्रधानमंत्री आलोचना के शिकार भी बने। यह कहीं न कहीं उनकी प्रांरभिक हिचक को भी दर्शाता है। 140 करोड़ जनता के दिलों से भी यही आवाज निकली क्योंकि ‘‘कीर्ति के गढ़ कभी नहीं ढहते’’। ‘अवसाद’ की स्थिति के चलते ही शायद फोगाट ने संन्यास की घोषणा कर दी, जो अयोग्य घोषित होने के बाद पुनः देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होकर एक आघात है।
तथ्यहीन, आधारहीन आरोप?
परंतु दुर्भाग्य मेरे देश का, एक वर्ग को, कुछ राजनीतिक पार्टियों और सोशल मीडिया को इस अयोग्यता के निर्णय में ‘‘षडयंत्र की बू’’ नजर आ रही है, जिस पर देश में फिर अनावश्यक बहस चलवाकर महत्वपूर्ण समय को ‘‘फालतू’’ बना दिया जा रहा है। प्रथम तथाकथित आरोपों की बात कर ले। प्रमुख सीधे-बेबाक कहने वाले वरिष्ठ पत्रकार अशोक वानखेडे ने यह आशंका व्यक्त की है कि, विनेश के खाने में एंटी कोलीनर्जिक दवाई दी गई, जिसके कारण ‘‘वर्क आउट’’ के बाद भी पसीना जिससे वजन कम होता है, नहीं निकलता है। परन्तु इसका कोई आधार नहीं बतलाया है। अशोक वानखेड़े बयान बार-बार वीडियो सोशल मीडिया में बनाकर भ्रमित करने की बजाय यह प्रश्न क्यों नहंी पूछते है कि 100 किलोग्राम वजन कम होने पर विनेश मैट पर जाने के लिए क्यों तैयार हुई? अन्यथा उन्हें रजत पदक मिल जाता। भारतीय कुश्ती संघ व ओलंपिक संघ की नीयत पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। स्वयं भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष संजय सिंह ने भी सपोर्ट स्टाफ की भूमिका पर उंगली उठाते हुए जांच की मांग की है। ‘‘आप’’ सांसद संजय सिंह का बयान कि यह विनेश का नहीं देश का अपमान है, भारत सरकार हस्तक्षेप करे और बात न मानी जाए तो ओलंपिक का बहिष्कार करे। नितांत बचकाना बयान है। बयानवीर सांसद कंगना राणावत का बयान भी तंज करने वाला है। पूर्व सांसद डॉ. एस टी हसन के कथनानुसार यदि पूरे बाल कटवा दिए जाते तो 200 ग्राम वजन कम हो जाता? डॉ. एस टी हसन को यह जान लेना चाहिए कि न केवल उनके कुछ बाल काटे गये बल्कि नाखून भी काटे गए थे, तथा कपड़े भी छोटे किए गए, जैसा भारतीय दल के चीफ मेडिकल ऑफिसर ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ दिनशॉ पारदीवाला ने बतलाया। लेकिन पूरे बाल कटवाने के बावजूद भी 100 ग्राम वजन कम नहीं होता, ऐसा कथन दूसरी महिला खिलाड़ी ने किया है।
षडयंत्र का आरोप लगाने वाले शायद इस बात को भूल गए हैं या भूलने का नाटक कर रहे हैं कि स्वयं खिलाड़ी विनेश फोगाट से लेकर उनके कोच, ट्रेनर, न्यूट्रिशनिस्ट फिजियोथेरेपिस्ट, डॉक्टर, अटेंडेंट किसी भी सपोर्टिंग स्टाफ ने इस तरह का कोई आरोप नही लगाया, बल्कि ऐसे तथाकथित आरोपो से इनकार ही किया है। विनेश की बहन बबीता व ताऊ महावीर सिंह जो स्वयं भी कोच हैं, जिन्होंने विनेश को खेल में आगे बढ़ाया, ने भी किसी तरह के षडयंत्र से साफ इंकार किया है। तब इसे विशुद्ध निम्न स्तर की राजनीति ही नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे? जहाँ तक कोच और सपोर्टिंग स्टाफ पर लापरवाही का आरोप लगाने का प्रश्न और जांच की बात है, स्वयं खिलाड़ी फोगाट ने ऐसा कोई आरोप नहीं लगाया है। फिर भी यदि इस संबंध में भारतीय ओलंपिक संघ या सरकार कोई जांच कराती है, तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए।
खेल मंत्री का संसद में निर्लज्ज बयान
खेल मंत्री मनसुख मंडाविया का विनेश फोगाट करने के संबंध में दिया गया बयान बेहद ही शर्मनाक व खेद जनक है। जब वे विनेश फोगाट पर वर्ष 2021 से विभिन्न अवसरों पर किए गए किए गए खर्चों के एक-एक पाई का हिसाब बनिए सम्मान देते हुए यह जानकारी देते है कि पेरिस ओलंपिक तक के लिए सपोर्ट स्टाफ के साथ 7045775 रू. की वित्तीय सहायता दी गई। क्या किसी ने यह विवरण पूछा था? यदि खेल मंत्री इसके साथ यह भी बतलाने का कष्ट करते कि उनके घर की बिजली, टेलीफोन, आव भगत, यात्रा, भवन रिनोवेशन आदि पर उक्त अवधि सरकार ने कितना खर्चा किया? तो जनता को यह जानकारी जरूर हो जाती कि उनके खेल मंत्री ने अपने ऊपर होने वाले खर्चों की कटौती कर विनेश फोगाट को ओलंपिक में गोल्ड मेडल प्राप्त करने की तैयारी के लिए उक्त सहायता दी? क्या वित्तीय सहायता देने से सरकार की जिम्मेदारी इतिश्री हो जाती है?
सपोर्ट स्टाफ’’ की लापरवाही, षड्यंत्र या साजिश?
प्रश्न यह है कि क्या इस बात की सही गणना आकलन स्वयं फोगाट और उनका सपोर्ट स्टाफ नहीं कर पाए कि तीसरी बाइट के बाद अगले दिन की बाइट की एनर्जी के लिए भोजन कितना लेना चाहिए? स्वयं विनेश फोगाट का 12 अप्रैल का ट्वीट तथाकथित साजिश के आरोप के तहत महत्वपूर्ण है। देखिए मेरे द्वारा भारत सरकार व सभी से मेरे कोच और फिजियो की ‘‘मान्यता’’ के लिए रिक्वेस्ट की जा रही है। मान्यता के बिना मेरे कोच और फिजियो का मेरे साथ प्रतियोगिता मैदान में जाना संभव नहीं है। जो टीम के साथ कोच लगाए गए हैं वे सभी बृजभूषण और उसकी टीम के चहेते हैं, तो इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि वो मेरे मैच के दौरान मुझे मेरे पानी में कुछ मिला के ना पीला दे? अगर मैं ऐसा कहूं कि मुझे ‘‘डोप’’ में फसाने की साजिश हो सकती है, तो गलत नहीं होगा’’। यह ट्वीट जहां अंतिम लाइन में शंका को जन्म देता है, तो वहीं वह प्रारंभ में शंका को निर्मूल करता है। ‘‘विनेश का ट्वीट में कहां गया कथन स्वयं में ही विरोधाभासी है। एक तरफ वे जहां सरकार से सपोर्ट स्टाफ की मान्यता (एक्रीडेशन) की मांग करती हुई दिख रही है, वहीं दूसरी ओर वे उसी सपोर्ट स्टाफ पर डोप में फंसाने के साजिश का आरोप लगा रही है। बावजूद अयोग्य घोषित होने के बाद विनेश जो प्रधानमंत्री के शब्दों में दृढ़ता का प्रतीक होकर चुनौतियों का डटकर मुकाबला करने का उनका स्वभाव है के द्वारा किसी भी सपोर्ट स्टाफ के विरुद्ध ऐसी कोई शिकायत नहीं की गई है। इससे साजिश की तथाकथित कहानी (थ्योरी) स्वयमेव ही समाप्त हो जाती है। विनेश फोगाट को मार्च 2024 में पटियाला में चयन ट्रायल के दौरान विश्व कुश्ती के नियमों के परे जाकर दो भार वर्ग 50 व 53 किलोग्राम में भाग लेने की अनुमति इसी भारतीय कुश्ती संघ द्वारा दी गई। जहां वे 53 किलोग्राम भार के वर्ग में हार गई थी। तत्समय की विद्यमान विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भारतीय कुश्ती संघ का यह कदम ‘‘सहयोगात्मक’’ ही कहलायेगा। साथ ही संघ ने उन्हे व्यक्तिगत कोच, फिजिशियन न्यूट्रिशनिस्ट भी मुहैया कराया।
नियम से ऊपर कोई नहीं।  
बात सिर्फ 100 ग्राम वजन के बढ़ने की नहीं है। किसी भी खेल में जहां वजन के अनुसार विभिन्न श्रेणी में वर्गीकृत की जाती है, वहां यदि किसी भी श्रेणी में निर्धारित सीमा से एक ग्राम भी वजन बढ़ता है, तो उस खिलाड़ी को अयोग्य घोषित कर दिया जाता है। क्योंकि ओलंपिक या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नियमों का बहुत ही कड़ाई से पालन होता है। इसीलिए खिलाड़ी वजन मशीन साथ में लेकर चलते हैं। भार की योग्यता के संबंध में यह वस्तु स्थिति है। तथापि विनेश ने खेल पंचाट न्यायालय (सीएएस) में अपील दायर की है, जो सुनवाई हेतु स्वीकार कर ली गई है, जिसमें उन्हें सिल्वर मेडल मिलने की पूर्ण संभावना है। इसलिए भी क्योंकि सेमीफाइनल जीतने के बाद रजत पदक की वे वैद्य अधिकारी हो गई थी। यदि वे किसी कारण से मान लीजिए स्वास्थ्य कारण से फाइनल में नहीं उतरती तो सेमीफाइनल में जीत से वे रजत पदक की हकदार हो गई थी। 140 सदस्यीय सपोर्ट स्टाफ के साथ भारतीय टीम के साथ 117 खिलाड़ी जिनमे कुश्ती के छः खिलाड़ी भी शामिल है, पेरिस गए हैं। विनेश फोगाट के साथ उनके कोच, ट्रेनर, डॉक्टर, फिजियोथेरेपिस्ट, न्यूट्रिशनिस्ट, डाइटिशियन (पोषण विशेषज्ञ), अटेंडेंट अर्थात समस्त सपोर्ट स्टाफ था, जिनकी पूरी निगरानी में फोगाट ने न केवल आहार (डाईट) ली, बल्कि निर्देशानुसार इसीलिए पूरी रात्रि ‘‘वर्क आउट’’ अर्थात एक्सरसाइज, सोना बाथ, स्किपिंग, साइकलिंग, जॉगिंग की गई व खून निकाला गया। फलतः 2600 ग्राम तक वजन कम हुआ। मात्र 100 ग्राम प्रयास के बावजूद भी कम नहीं हो पाया। उल्लेखनीय बात यह है कि ओलंपिक खेल ग्राम में विनेश फोगाट के पास यह विशेष सुविधा थी कि सपोर्ट स्टाफ उनके साथ ही रहता था, जबकि अन्य खिलाड़ियों का सपोर्ट स्टाफ दूसरी जगह रहता था। इस प्रकार विनेश 24 घंटे सपोर्ट स्टाफ की निगरानी में थी।
100 ग्राम से अंदर-बाहर।
आईये इस बढ़े हुए 100 ग्राम वजन की कुछ चीर-फाड़ कर सही तथ्यों को समझने का प्रयास करते हैं। कुश्ती खेल के खिलाड़ियों के लिए यह सामान्य सी बात है कि उन्हें अपना वजन सामान्य से कम करके ही खेलना होता है। इसके लिए वे लगातार खेल के पहले व खेल के बाद चुनी गई श्रेणी में बने रहने के लिए कम वजन करते है। पिछले टोक्यो ओलंपिक में विनेश 53 किलोग्राम भार वर्ग में खेली थी, परन्तु असफल हो गई। 58 किलोग्राम वर्ग में ‘‘अंतिम पंघाल’’ के कांस्य पदक जीतने पर विनेश पेरिस ओलंपिक में इसी वर्ग भार में खेलना संदिग्ध हो गया था। उनका सामान्य वजन 55 किलो से ऊपर होता है। रियो ओलंपिक में 48 किलोग्राम वर्ग में खेली  थी। जहां 400 ग्राम वजन अधिक होने के कारण वह मुख्य स्पर्धा में जगह बनाने से चूक गई। वे फिर 50 किलोग्राम के वर्ग में चली गई। वजन कम करने का मतलब कदापि यह नहीं है कि आप जब भी चाहे जितना चाहे समस्त प्रयासों से आप की इच्छा अनुसार वजन कम करने के प्रयासों को आपका शरीर भी उतना ही ‘‘परिकलित प्रतिक्रिया’’ (कैलकुलेटर रिस्पांस) दे। जो लोग मात्र 100 ग्राम कहकर आलोचना कर रहे हैं, वे शायद इस स्थिति को भूल गए हैं। फोगाट ने अपना सामान्य वजन 53 किलो से कम कर प्रतियोगिता प्रारंभ होने के वजन 49.900 किलोग्राम किया था। फिर एक ही दिन में तीन बाइट लड़ने के बाद 1.50 किलो खाना लिया जो अगले दिन की बाइट के लिए एनर्जी के लिए आवश्यक हो जाता है। यह एक सामान्य प्रक्रिया है। शरीर में लगभग 60% पानी सामान्यतः होता है, जिसके द्वारा ही वजन कम किया जाता है। लेकिन कई बार डिहाईड्रेशन की स्थिति भी हो जाती है, जहां खिलाड़ी की जान पर भी आ जाती है। जैसा कि 2015 में चीन के बाक्सर यांग जियान बिंग की मृत्यु हो गई थी। भोजन के बाद शाम को 50.700 ग्राम वजन 2.800 किलोग्राम (50.700-49.900) बढ़ गया। उक्त बढ़े वजन को कम करने के लिए 12 घंटे का समय पर्याप्त नहीं था, ऐसा टीम के डॉक्टर का कहना है। परन्तु बाद में दूसरे कुश्ती खिलाड़ी अमन सहरावत जिन्होंने कांस्य पदक जीता, ने मात्र 10 घंटे में 4.600 किलोग्राम वजन घटाया, वह कैसे संभव हो गया? यद्यपि बजरंग पुनिया के कथनानुसार पुरुषों की तुलना में महिलाओं का वजन कम करने में ज्यादा दिक्कत होती है। फिर मुक्केबाज मेरीकॉम का  उदाहरण भी है जिन्होंने मात्र लगभग 6 घंटों में 4 किलो वजन कम किया था। इसलिए जांच कमेटी द्वारा कराया जाना आवश्यक है। कुछ घंटों का समय और होता तो आज यह नहीं कहना पड़ता कि ‘‘ख़ता लम्हों की थी, सजा सदियों ने पाई’’।
अन्य कोई विकल्प नहीं रह गया था? अथवा विनेश व कोच की नासमझी?
तथापि विनेश यदि कम खाना लेकर भार को सीमा के भीतर रख कर प्रतियोगिता में भाग लेने का विकल्प चुनती तो शायद उन्हें रजत पदक से ही संतोष करना पड़ता। क्योंकि तब शायद एनर्जी कम होने के कारण शारीरिक शक्ति कम होती। शायद यही कारण रहा होगा किसी भी खिलाड़ी के लिए जब वह अपने लक्ष्य के इतने निकट पहुंच जाता है, तब वह उसे प्राप्त करने के लिए अपना सब कुछ स्वाहा कर दांव पर लगा कर लक्ष्य प्राप्त करने का प्रयास करता है। ऐसी स्थिति में यहां क्या कोच एवं स्वयं विनेश फोगाट की नासमझी नहीं रही, जब वे यह अच्छी तरह से जानती थी कि वजन ज्यादा होने के कारण वे अयोग्यता की श्रेणी में आ जायेगी। तब यदि वे स्वास्थ्य के आधार पर फाइनल में मैट़ पर उतरती ही नहीं, तब वैद्य रूप से उनका रजत पदक सुनिश्चित हो जाता? अतः इसे सिर्फ विनेश फोगाट का ही नहीं, बल्कि देश का दुर्भाग्य भी माना जाना चाहिए। ‘‘कालस्य कुटिला गतिरू’’! निश्चित रूप से भाग्य उनके साथ नहीं था।

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