रविवार, 5 जनवरी 2025

देश के ‘‘तंत्र’’ पर ‘‘चोट’’ कब तक पहुंचाते रहेंगे?


केजरीवाल की ‘धमाल’ घोषणाएं

दो महीने बाद फरवरी 2025 में दिल्ली के चुनाव होने वाले हैं। चूंकि चुनाव की तारीख की घोषणा अभी तक हुई नहीं हुई है, इसलिए अभी तक ‘‘आचार संहिता’’ भी लागू नहीं हुई है। "आप" के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल तीसरी बार सत्ता के घोड़े पर सवार होने के लिए जोश भरे उतावले ही नहीं, बल्कि पूर्वतः आश्वस्त भी हैं। यही नहीं वे इस लक्ष्य को मजबूती प्रदान देने के लिए ‘‘साम-दाम-दंड-भेद’’ नीति के साथ समस्त चुनावी लटके-झटके जो कुछ हो सकते हैं, पूरी ताकत से इस चुनाव में झोंक दे रहे हैं। इसी क्रम में उन्होंने पूर्व की योजना आधी बिजली फ्री, फ्री जल योजना, महिलाओं के लिए फ्री बस का आगाज करके जिस प्रकार मतदाताओं को भ्रष्ट करने का सफलतापूर्वक प्रयास किया, उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए 60 वर्ष से ऊपर की उम्र के सभी बुजुर्गो के असीमित मुफ्त स्वास्थ्य के लिए "संजीवनी योजना" व 18 वर्ष से उपर की समस्त महिलाओं के लिए "महिला सम्मान योजना" के नाम से तुरंत 1000/- नगद व 2100/- रू.‘‘सत्ता पे आने पर’’ देने का वादा किया। "सब धान बाईस पसेरी" की इस घोषणा के साथ ही रजिस्ट्रेशन भी चालू कर "केजरीवाल कवर्ड कार्ड" जारी किया जाएगा। परंतु इस "टके सेर भाजी टके सेर खाजा" वाली राजनीति के ‘हाल’ इतने ‘बेहाल’ है और राजनेताओं का दिमाग खराब होकर ‘‘दिवालिया’’ कंगाल हो चुका है कि स्वयं ही इसी तरह की मुफ्त योजनाएं देने वाले, चुनाव पूर्व घोषणा करने वाली भाजपा व कांग्रेस, केजरीवाल की इन घोषणाओं को वोटरों को लुभाने, भ्रमित, गुमराह करने का प्रयास व चुनावी जुमला बताते हुए ‘‘युवक कांग्रेस’’ तो  भारतीय न्याय संहिता की (बीएनएस) धारा 316 के तहत आपराधिक साठ-गांठ  का अपराध दर्ज करने हेतु प्राथमिकी करने की सीमा तक चली गई। देश की बदहवास राजनीति में  ‘‘मेरी’’ मुफ्त की योजना गरीब जनता की आवश्यकता की पूर्ति है और ‘‘आपकी’’ मुफ्त योजना  "रेवड़ी" है, बेशर्मी से कहने से राजनीतिक पाटियां बिल्कुल हिचकती नहीं हैं, और जनता यह बात समझने को राजी नहीं है कि कुछ भी मुफ़्त नहीं मिलता, "भेड़ जहां जायेगी, मूंड़ी जायेगी"। क्योंकि अंततोगवता तो वह टैक्स के रूप में जनता से ही वसूला जाता है।

 सातवां आश्चर्य l सरकारी विज्ञापन से सरकारी अफसर द्वारा ही सरकार की घोषणा का खंडन l 

अत्यंत आश्चर्य की बात है तो यह है कि स्वयं दिल्ली सरकार, जिसके नाम पर उक्त मुफ्त योजनाएं की घोषणा की गई है, के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय एवं स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण विभाग के  संयुक्त निदेशक व विशेष सचिव  ने बाकायदा सरकारी पैसे से समाचार पत्रों को लाखों रुपए का विज्ञापन जारी कर यह कहा कि इस तरह की कोई योजना दिल्ली सरकार में न तो अस्तित्व में है और न ही अधिसूचित की गई है। नागरिकों को आगाह किया किया जाता है कि इस तरह के झूठे वादों को न माने व कार्ड बनाने के नाम पर निजी जानकारी न दें l क्योंकि ये स्कीम पूरी तरह से फर्जी, भ्रामक और अनाधिकृत है। इस प्रकार की चेतावनी तो "मुफ़्त की रेवड़ी के लिये लार टपकाती जनता" के लिये "अंधों की दुनिया में आईना बेचने के समान" है। परंतु देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि सरकार की योजना को सरकार के संबंधित विभाग केअफसरों ने बाकायदा सिर्फ पत्र द्वारा नहीं बल्कि लाखों रू. का विज्ञापन सरकार के विरुद्ध देकर जनता को यह चेताया है कि इस तरह की योजना विभाग के पास नहीं है। इस प्रकार शासन की किसी घोषणा के विरुद्ध जनता के बीच स्वयं शासन का विभाग (डिपार्टमेंट) गया, जो उनके अधिकार क्षेत्र में बिल्कुल भी नहीं है बल्कि सेवन नियमों का उल्लंघन है। वे योजनाओं के प्रति सिर्फ अपनी असहमति फाइल पर लिखित में दर्ज कर सकते थे। यह एक ऐतिहासिक आश्चर्यजनक दुर्भाग्य पूर्ण घटना होकर पहली बार घटी है, जबकि केजरीवाल की घोषणा में कहीं यह नहीं कहा गया कि रू. 2100/- देने की स्कीम को तुरंत लागू कर दिया गया है, बल्कि स्पष्ट रूप से कहा गया कि यह योजना चुनाव बाद जीतने पर लागू की जाएगी। यह "केजरीवाल गारंटी" है, जैसा कि मुख्यमंत्री आतिशी ने कहा।

योजनाओं द्वारा आम जनो को भ्रमित करने का आरोप! ‘‘आप’’ पर!

यह आरोप आम आदमी पार्टी पर लगाया जा रहा है कि मतदाताओं को लुभाने के लिए गलत व भ्रामक स्कीम का सहारा लेकर आम लोगों की निजी जानकारी, स्कीम के तहत लेकर ओटीपी वेरिफिकेशन भी कराया जा रहा है। वास्तव में इस पूरे मामले में तीन योजनाओं  को समश्रित कर तथ्यों के विपरीत आरोप जड़ दिये गये हैं। प्रथम 12 दिसम्बर को महिलाओं को 1000/- रू. देने की घोषणा की गई, जिसके बाबत मुख्यमंत्री ने कहा कि कैबिनेट का निर्णय होकर स्कीम बाकायदा नोटिफाई कर दी है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी घोषणा की गई है कि चुनाव बाद सत्ता में आने के बाद यह रकम बढाकर 2100/- रू. दिए जाएंगे। अतः 2100/- रू. के लिए कोई अधिसूचना या कार्ययोजना बनाने का आज तुरंत कोई भी प्रश्न उत्पन्न ही नहीं होता है। जैसा कि संबंधित विभाग ने विज्ञापन जारी कर ऐसी कोई कार्य योजना न होने या अधिसूचना जारी न होने से ‘‘भ्रामक’’ होने के कारण जनता को चेताया व कार्ड बनाने के नाम पर निजी जानकारी न देने की सलाह दी। तथापि 23 दिसंबर से दोनों योजनाओं के लिए रजिस्ट्रेशन प्रारंभ कर दिया गया है।

नौकरशाही की दबंगता।

प्रश्न यह है कि इन विभागों के  अधिकारियों के पास इतनी दबंगता, हिम्मत आई कहां से ? मतलब साफ है क्योंकि उनके वास्तविक मालिक लेफ्टिनेंट गवर्नर है, मुख्यमंत्री नहीं। इन अधिकारियों की दबंगता के दो मतलब निकलते है। 77 साल के स्वतंत्र भारत के इतिहास में नौकरशाही के एक स्वतंत्र संवैधानिक रूप से निष्पक्ष कार्य करने की उम्मीद की जाती थी, जो दुर्भाग्य वश वर्तमान में इस स्थिति में पहुंच गई है कि वे शासन के नौकर न होकर सरकार में बैठे मुख्यमंत्री, मंत्रियों के नौकर हो गये, इस कारण उनका अपना कानून सम्मत स्वतंत्र मत व अस्तित्व समाप्त हो गया। क्या इन विज्ञापनों ने नौकरशाही ने अपना स्वतंत्र अस्तित्व व जनहित में सरकार के नियमानुसार काम न करने पर अपने अधिकार क्षेत्र में अंकुश लगाने की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार को पुनर्स्थापित किया है ? यानी कि यह वह नौकरशाही नहीं है जो कि "कुम्हड़बतिया समान तर्जनी दिखाने भर से मुरझा जाये"। यह उपलब्धि अभूतपूर्व है, यदि वास्तव में इस विज्ञापन के पीछे यही उद्देश्य परिलक्षित होता है तो? परंतु वास्तव में तो विज्ञापन में तथ्यों को गलत, तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया हैै। इसका दूसरा अर्थ जो बहुत ही महत्वपूर्ण है, वह यह निकलता है कि यही ब्यूरोक्रेशी यह मान कर चल रही है कि आगामी होने वाले आम चुनाव में आप पार्टी चुनाव जीत करके आयेगी (तभी तो रू. 2100/- मिलेंगे?) चूंकि इसका क्रियान्वयन चुनाव के बाद होना है, जिसकी कार्ययोजना फिलहाल विभाग के पास नहीं है, यह बात जनता को बताना है। इस प्रकार जनता के सामने विभाग ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। हालांकि इसकी ज़रूरत नहीं थी, "अंधे ससुर के सामने क्या घूंघट करना"।

‘‘अजब गजब’’ मध्य प्रदेश, देश, अन्य प्रदेश। 

मैं पहले भी लिख चुका हूं मेरा प्रदेश मध्यप्रदेश की ‘‘अजब गजब’’ की डिग्री को इसी तरह का कार्य करके (जैसा हाल का ही कैश कांड) ‘‘मेरा देश’’ महान स्वयं अजब गजब देश बनने, "कर्ज़ा लेकर जनता को घी पिलाने", और "घर फूंक तमाशा देखने" की ओर चल पड़ा है। तब फिर अन्य प्रदेश भी इस दिशा की ओर क्यों नहीं चल पड़ेंगे? शायद इसी मन स्थिति कार्य दशा का यह परिणाम है कि दिल्ली सरकार के दो विभागो का उक्त विज्ञापन। ऐसा लग रहा है, भारत संघ के राज्यों के बीच उक्त ‘‘अजब गजब की डिग्री पाने’’ के लिए होड़ सी लग रही है। चूंकि यह सफर कुछ कठिन है, इसलिए समय लग रहा है।

एक ओर चारों वेद, एक ओर केजरीवाल की कुटिल चतुराई। 

एक आरोप यह लगाया गया कि सरकारी कार्यालय के सामने कैंप लगाकर फार्म भरवाए जा रहे हैं। यह आरोप नहीं एक तथ्य है, परंतु यह कोई अपराध नहीं है। दफ्तर की बाउंड्री के बाहर यदि नागरिक गण या राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता गण कोई फार्म भरवा रहे हों, तो इससे यह सिद्ध नहीं होता है कि यह कार्य सरकार की ओर से हो रहा है, भले ही राजनैतिक पार्टी का कार्यकर्ता उस पार्टी का सदस्य हो, जिसकी सरकार हो। हां "अकल अपनी ही आड़े आवे" की उक्ति को चरितार्थ करते हुए राजनीतिक रूप से जिस प्रकार राजनीतिक दृष्टि कलाकारी का उपयोग करते हुए केजरीवाल ने सरकारी कार्यालय के सामने टेबल लगाकर फॉर्म भरवा कर एक ‘‘परसेप्शन’’ व ‘‘नरेशन’’ बनाकर जिसमें वे माहिर है, "डंके की चोट पर" जनता को यह समझाने का प्रयास किया है कि यह सब सरकारी स्तर पर हो रहा है, जिससे जनता का विश्वास ज्यादा बने। इसी प्रकार विपक्ष को अधिकार है केजरीवाल की उक्त राजनीतिक चाल की काट करे, गलत परसेप्शन को उजागर करें। यद्यपि अभी-अभी (लाट साहब) उपराज्यपाल ने इस संबंध में आईं शिकायत पर जांच करने के आदेश दिए हैं।

चुनावी राज्यों में ऐसी घोषणाएं व फार्म भरे जा रहें है। 

जहां तक फार्म भरने की बात है, यदि विपक्षी पार्टी ऐसी घोषणा करती जैसा कि पूर्व में मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने किसानों की कर्ज माफी की घोषणा कर कर जनता से फार्म भरवाए थे, तब तो गलत नहीं ठहरया गया था ? फॉर्म भरने के लिए यदि कोई डाटा मांगा गया, वह ‘‘स्वेच्छा’’ से नागरिक भर कर दे रहे हैं, तो वह कानून गलत नहीं है। "मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काजी"। इन मुद्दों को लेकर नैतिकता की बात तो किसी भी पार्टी को करना ही नहीं चाहिए। ऐसे कई उदाहरण अनेक प्रदेशों जैसे महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड इत्यादि में पूर्व के मिल जाएंगे, जहां चुनाव पूर्व लोभ लुभावनी मुफ्त  घोषणाएं की गई और घोषणाओं के आधार पर फार्म भी भरवा गए।

 महाराष्ट्र के ‘‘कैश कांड’’ की पुनरावृत्ति। 

एक तरफ जहां 1100/- देने की घोषणा ‘आप’ द्वारा की जा रही थी, तो इसी समय दूसरी ओर दिल्ली में भाजपा के मुख्यमंत्री के एक संभावित चेहरे, सांसद, पूर्व विधायक प्रवेश वर्मा नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में जहां से अरविंद केजरीवाल चुनाव लड़ रहे है, 1100/- रू. नगद महिलाओं को व एक कार्ड देते हुए पाये गए। आप पार्टी ने प्रवर्तन निदेशालय से लेकर चुनाव आयोग सबसे तुरंत कार्रवाई की मांग की। प्रवेश वर्मा द्वारा यह कहा गया की यह उनके पिताजी साहेब सिंह वर्मा द्वारा 25 वर्ष पूर्व बनाया गया ट्रस्ट द्वारा राशि जरूरतमंदों को सहायता सीधे दी जा रही है जो कार्य पहले भी किया जाता रहा है। चुनाव आयोग द्वारा कोई कार्रवाई न किए जाने पर यह बेदम तर्क दिया गया कि अभी आचार संहिता लागू नहीं हुई है। जब लिफाफे के साथ जे.पी. नड्डा की तस्वीर निकल रही हो और कुछ महिलाओं ने कैमरे पर आकर यह कहा हो कि हमें पैसे देने के साथ भाजपा को वोट देने का भी कहा गया है, तब चुनाव आयोग के पास यह अधिकार है और उसका यह कर्तव्य हो जाता है कि वह तुरंत इस घटना का संज्ञान ले। परंतु चुनाव आयोग अपनी निष्पक्षता तो पहले ही संपन्न हो चुके कई चुनावों की आग में जला चुका है, जो अब बची कहां है?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Popular Posts