डॉ. यादव की अभी मात्र ‘‘घोषणा’’! ‘‘निर्णय’’ नहीं?
अंततोगत्वा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने घोषणा कर यह जानकारी दी की धार्मिक स्थलों की पवित्रता बनाये रखने के लिए प्रदेश के 16 धार्मिक स्थलों में पूर्ण शराबबंदी लागू की जायेगी। इसके लिए नई आबकारी नीति वर्ष 2025-26 तैयार हो गई है, सिर्फ अवैध शराब की तस्करी को रोकने के लिए शराब की नीति में 10-15 प्रतिशत की बढ़ोत्री की जायेगी, जिसे मंजूरी हेतु कैबिनेट में लाया जायेगा। ज्ञातव्य हो कि महात्मा गांधी ने कहा था कि यदि मुझे एक दिन के लिये भारत का तानाशाह बना दिया जाये तो जो सबसे पहला काम मैं करुंगा, वह देश की सारी शराब दूकानें बिना मुआवजा दिये बंद करवा दूंगा, क्योंकि शराब शरीर और आत्मा दोनों का विनाश करती है’’। इसलिये ‘‘देर आयद दुरुस्त आयद’’, ‘‘बहुत नहीं तो थोड़ा आयद’’!
सुश्री उमाश्री भारती के तीन वर्ष के संघर्ष का परिणाम।
आपको याद ही होगा कि देश की फायरब्रांड नेत्री (यद्यपि कुछ प्रभावी नेताओं ने उनके तेजतर्रार व्यक्तित्व को कम करने का असफल प्रयास जरूर किया) पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री उमाश्री भारती के नेतृत्व में अपनी ही सरकार शिवराज सिंह के समक्ष (विरोध में नहीं) शराबबंदी को लेकर आवाज उठाई थी। सर्वप्रथम 8 मार्च 2021 को महिला दिवस पर शराब एवं नशा मुक्ति अभियान प्रारंभ करने की घोषणा की थी। इसके 10 दिन पूर्व भी नशाबंदी अभियान को लेकर ‘‘चेतावनी’’ दी थी। तत्पश्चात जन जागरण आंदोलन के द्वारा प्रतीकात्मक रूप में राजधानी भोपाल में स्थित एक शराब दुकान पर पत्थर और भगवान राजा राम के शहर ओरछा की एक शराब दुकान पर गोबर फेंका था। शिवराज सरकार ने सुश्री उमाश्री की मांग को आंशिक स्वीकार करते हुए ‘‘अहाते’’ बंद करने का निर्णय लिया। यह तो वही बात हुई कि ‘‘रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई’’। तत्पश्चात सुश्री उमाश्री की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से मुलाकात हुई और तत्पश्चात 2 अक्टूबर 2022 को कर्फ्यू वाली माता मंदिर से पूजा कर बाबा रामदेव व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की उपस्थिति में भोपाल के मोतीलाल नेहरू स्टेडियम में उपस्थित जनता को शपथ दिलाकर ‘‘नशा मुक्ति अभियान’’ प्रारंभ किया। यहां उल्लेखनीय बात यह भी है कि तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव जिन्होंने अभी मुख्यमंत्री के रूप में नई आबकारी नीति की घोषणा की है, ने भी तत्समय उमाश्री की मांग का न केवल समर्थन किया, बल्कि यहां तक कह गए थे कि शराबबंदी ‘‘आज नहीं तो कल करनी होगी’’। उमाश्री भारती ने मोहन यादव की वर्तमान घोषणा की सराहना करते हुए इसे धार्मिक, सामाजिक दृष्टिकोण से सही बतलाया है। सही इसलिये कि ‘‘कपूत कलाल के जावे और सपूत सुनार के’’।
शिवराज उवाच।
उक्त 2 अक्टूबर 2022 के अवसर पर शिवराज सिंह ने ‘‘दीदी’’ की उपस्थिति में कहा था कि, हम ऐसी आबकारी नीति बनाएंगे, जिसमें नशे की लत को बढ़ावा न मिले। यानी कि हरिवंशराय बच्चन के शब्दों में -- ‘‘लाख पटक तू हाथ पांव पर इससे कब कुछ होने वाला, लिखी भाग्य में जो तेरे बस वही मिलेगी मधुशाला’’।
परंतु शिवराज सिंह ‘‘जगत मामा’’ होने के बावजूद उन भांजियों जिनकी माताएं उनकी बहने हैं, जिनके प्रति बाद में उन्होंने ‘‘लाडली बहना योजना’’ के रूप में अपना अपार प्रेम भी प्रदर्शित किया, और उमाश्री भारती को बहन मानने के बावजूद, उक्त बहन की मांगों पर तदनुसार निर्णय नहीं ले पाये। शिवराज सिंह के उक्त संकल्प मात्र शब्दों में ही सीमित हो कर रह गये। या कहना चाहिये कि ‘‘उनके हाथों से तराशे हुए सनम पाषाण हो कर रह गये’’। शिवराज सरकार के वादे जो जमीन पर उतरे नहींः-(अ).शराब पीकर गाड़ी चलाते पहली बार पकड़ाए तो 6 माह, दूसरी बार में 2 साल और तीसरी बार में आजीवन ड्राइविंग लायसेंस रद्द करेंगे। (ब).शराब छोड़े, दूध पियो अभियान को सशक्त करेंगे। (स).जहां दुकानों का विरोध, वहां जनप्रतिनिधि, पुलिस-प्रशासन की सजगता से दुकान का स्थान बदलेंगे। क्योंकि ‘‘जैसे खटिया में खटमल वैसे गांव में कलाली’’। अतः जरूरी हुआ तो नीलामी नहीं। जिस ‘‘लाडली बहना योजना’’ के आधार पर सिर्फ शिवराज ने भाजपा की सरकार बनाई। बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया, जो नैतिकता और आम जनता की दृष्टि से व शिवराज के राजनीतिक व्यक्तित्व के लिए उचित नहीं था। शायद वचन पूरे न करने का यह दुष्परिणाम तो नहीं था? या फिर वचन पूरा नहीं करने के पीछे सांप्रदायिक एकता का भाव तो नहीं था? क्योंकि पुनः बच्चन के शब्दों में--‘‘मंदिर मस्जिद बैर कराते मेल कराती मधुशाला’’।
डॉ. यादव की ‘‘कार्यशैली’’ शिवराज से अलग।
बेशक डॉ मोहन यादव, संघ के एजेंडे पर हिंदुत्व को मजबूत करने के साथ ही सामाजिक बुराई पर अंकुश लगाने के लिए नित्य नये-नये निर्णय पार्टी की दृष्टि से जनहित में ले रहे हैं। तथापि वे शिवराज सिंह समान व्यक्तिगत दावा या श्रेय नहीं लेते हैं, बल्कि समस्त श्रेय पार्टी नेतृत्व को ही देते हैं। यह सोच उनकी राजनीतिक परिपक्वता व बड़प्पन को उद्धरित करती है जो उनकी राजनीतिक सफलता में एक बड़ा योगदान है।
‘‘पूर्ण शराब बंदी’’ का निर्णय लेना आसान नहीं।
देश में फिलहाल मात्र चार प्रदेश गुजरात, बिहार नागालैंड व मिजोरम तथा एक केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप है, जहां पूर्ण शराबबंदी लागू है, जहां शराब के उत्पादन, बिक्री एवं सेवन पर पूर्णतः प्रतिबंध है। देश के कुछ प्रदेशों हरियाणा आंध्र प्रदेश मणिपुर केरल में भी इस दिशा में आशिक कदम उठाए गए थे, परन्तु बाद में वह वापस ले लिये गये। कोई भी जनप्रिय सरकार सिद्धान्त व नीतिगत रूप से जनता खासकर जागरूक महिलाओं के दबाव के चलते शराबबंदी की बात जरूर करती है। परन्तु इसके पीछे भारी कमाई, राजस्व के चलते व्यवहार में लागू करने में हमेशा पीछे हट जाती है। यह तो वही बात हुई कि ‘‘कदली और कांटों में प्रीत कैसी’’। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 10 से 15 प्रतिशत शराब से राजस्व मिलता है। ‘‘अब घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या’’? यदि पिछले 6 वर्षो की मध्य प्रदेश सरकार की शराब के राजस्व (आय) के निम्न चार्ट को आप देखेगें तो वर्ष 2020-21 को छोड़कर (जब कोरोना का प्रभाव था) प्रत्येक वर्ष राजस्व बढ़ा है। वर्ष 2018-19 -9056.98, 2019-20-10773.29, 20-21- 9520.96, 21-22-10395.69, 22-23-13005, 23-24-13590.51, 24-25-15700 (अनुमानित)।
पूर्व में मध्य प्रदेश सरकार दो बार शराबबंदी की दिशा में आंशिक कदम उठा चुकी है। वर्ष 2016-17 में शिवराज सिंह ने नर्मदा नदी के 5 किलोमीटर के दायरे में 20 जिलों में शराबबंदी लागू की थी। यद्यपि सरकार ने 23 जून 2022 को नशा मुक्ति अभियान प्रारंभ किया व तथापि सरकार ने बजट में बहुत कम राशि शराब से आय की तुलना में प्रावधान किया है। परंतु वह भी खर्च नहीं हो पाती है। यद्यपि सरकार ने नवम्बर 2024 से नशा मुक्ति के क्षेत्र में उत्कर्ष कार्य करने के लिए 1 लाख पुरस्कार देने की घोषणा जरूर की है।
आय का विकल्प ढु़ढ़ना अतिआवश्यक।
मध्य प्रदेश में कुल राजस्व का लगभग 16 प्रतिशत शराब से ही आता है। जबकि जीएसटी 34 प्रतिशत है। चूंकि ‘‘कंगाल का कलेजा कच्चा होता है’’ अतः जब तक इस राजस्व के विकल्प (नुकसान की भरपाई) की खोज नहीं की जायेगी, तब तक कर्ज में डूबा प्रदेश में वास्तविक अर्थों में आंशिक शराबबंदी भी लागू हो पायेगी, इसमें संदेह है। चूंकि मैं आयकर वकील हूं, जहां यह कहा जाता है कि (क्वेश्चन इज नॉट व्हाट यू आर बट क्वेश्चन इस व्हाट यू सेव) ‘‘प्रश्न यह नहीं है कि आप कितना कमाते हैं, बल्कि कितना बचाते हैं। ‘‘मतलब खर्चे में बचत भी एक आय हैं। उक्त उद्हरण करने का उद्देश्य मात्र यह है कि मध्य प्रदेश शासन को इस बचत की दिशा में भी कदम उठाने की आवश्यकता है। एक अनुमान के अनुसार शराब पीने वालो की संख्याा देश की एक तिहाई पुरूष है। अतः शासन को शराब की आय के ‘‘आकर्षण’’ के साथ यह भी सोचना चाहिए कि इससे इसके दुष्परिणामों से उत्पन्न सामाजिक दुर्घटनाएं, कानून की स्थिति में गिरावट, परिवारों का टूटना व उन पर आर्थिक बोझ बढ़ना इत्यादि के कारण सरकार को कहीं न कहीं इन सब के लिए अतिरिक्त पैसा प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष खर्च करना होता है, जो अंततः कुल राजस्व से ज्यादा नहीं तो बराबर तो हो ही जाता है। शराब की ‘‘वास्तविक क्रय शक्ति के साथ वास्तविक’’ आय ‘‘मतलब निल बटे सन्नाटा’’। इस दृष्टिकोण से भी सरकार को गंभीर रूप से विचार करने की आवश्यकता है।
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